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अध्याय 1
अग्नि-परीक्षा : एक अध्ययन
पिघल-पिघल उनके मन्तर को धो सकता है,
रो सकता है, किन्तु नहीं वह सो सकता है। परन्तु नारी के लिए उसकी ममता और मधुरिमा, उसकी मेवा और समर्पण युग-युग में अभिशाप ही सिद्ध हुए हैं । स्वयं शक्ति की प्रतीक होते हुए भी जैसे वह अपने आत्म-बल को भूली हुई है। इस जागृत आत्म-चेतना के अभाव में ही उसका बलिदान आज बकरी का बलिदान बनता जा रहा है। स्वयं बलि होने में नारी का गौरव रहा होगा, परन्तु पुरुष के द्वारा बलि किए जाने में तो उसके भाग्य की विडम्बना ही है। 'अग्नि-परीक्षा' की सीता अपने प्रकृत धर्म का पालन करते हुए अपने आपको मिटाने में कहीं पीछे नहीं हटती है, परन्तु वह बकरी की तरह मिमियाती नही है, उसकी वाणी में वज का गर्जन है और अग्नि-कुण्ड की लपलपाती हुई लपटों के सामने वह नारी-जीवन के एक महान सत्य का प्रत्यक्षीकरण करती है:
जागृत महिला का महत्व, इस महि-मंडल पर अमल रहा, जिसने प्राण-प्रहारी संकट, प्रण को रखने सबा सहा, उसके यशका उज्ज्वल अविरल अविकल प्रविचल स्रोत बहा, दिखलाया है हवय खोलकर, समय-समय वीरत्व प्रहा, कढ़ी जुड़ेगी उसमें मेरे इस उन्नत अभियान की।
बलिदानों से रक्षा होगी नारी के सम्मान की। प्रात्म-बलिदान के द्वारा प्रात्म-सम्मान की रक्षा करने वाली जागृत महिला सती सीता के उज्ज्वल यश का यह काव्य-स्रोत प्रवाहित करने के लिए हिन्दी-जगत् प्राचार्यश्री तुलसी का चिर प्राभारी रहेगा। आशा है, जीवन के शाश्वत सत्यों के प्रकाश में सम-सामयिक समस्याओं के समाधान की पोर इङ्गित करने वाले और कई महाकाव्य आपकी पुण्य-प्रमू लेखनी से प्रमून होंगे।