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युगपुरुष ! तुम्हारा अभिनन्दन
मुनिश्री बुद्धमल्लजी
युगपुरुष ! तुम्हारा अभिनन्दन । अपना अतिशय चैतन्य लिए इस धरती पर युग के श्वासों को सुरभित करने पाये हो, कलि के कर्दम में खड़े हुए तुम पंकज से अपनी सुषमा में सतयुग को भर लाये हो, फिर भी निलिप्त; निछावर करते पाये हो जन-हेतु स्वयं के जीवन का तुम हर स्पन्दन ।
युगपुरुष ! तुम्हारा अभिनन्दन । युग की पीड़ा का हालाहल खुद पीकर तुम पीयुष सभी को बाँट रहे हो निर्भय बन, वत्सलता की यह गोद हो गई हरी-भरी परहित जब से कि समर्पित तुमने किया स्वतन, युग के पथदर्शक ! आज तुम्हारी सेवा में युग-श्रद्धा आई है करने को पद-वन्दन ।
__ युगपुरुष ! तुम्हारा अभिनन्दन । मानवता की पांचाली का अपमान भूल सत्साहम का अर्जुन जब भ्रान्त हुआ पथ से, अणुव्रत की गीता तब तुमसे उपदिष्ट हुई कर्तव्य-बोध के अंकुर फिर फूट अथ से, नव-युग के पार्थ-सारथी ! तुम निज कौशल से संचालित करते युग-चेतनता का स्पन्दन ।
युगपुरुष ! तुम्हारा अभिनन्दन ।