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माचार्यश्री तुलसौ अभिनन्दन ग्रन्थ
[ प्रथम
सर्वधर्म समभाव अर्थात् सब विश्वासों और धर्मों के प्रति मादर भाव का जो महान् गुण है, उसका हर व्यक्ति को प्रतिदिन और प्रतिक्षण पाचरण करना चाहिए। इसके बिना भारत बलशाली और सुखी नहीं हो सकता और न मनुष्यों के एक अत्यन्त प्राचीन जीवित समाज के नाते इतिहास ने उसके लिए जो कर्तव्य निर्धारित किया है, उसकी पूर्ति कर सकता है।
प्रत्येक व्यक्ति को, चाहे उसका जीवन में कोई भी स्थान या पद क्यों न हो, प्रतिदिन एक-दूसरे के प्रति प्रादर प्रकट करने और एक-दूसरे को समझने का प्रयत्न करना चाहिए। किसी भी भारतीय के लिए यह महान् देश भक्तिपूर्ण सेवा होगी। कर्तव्य की दृष्टि से यह सेवा बहुत आसान है और परिणाम की दृष्टि से वह उतना ही शक्तिशाली है। इस छोटी बात की तुलना हम अणु-शक्ति केन्द्र के एक छोटे अणु से कर सकते हैं।
प्रणवत-मान्दोलन और इस महान् मान्दोलन के प्रवर्तक प्राचार्यश्री तुलसी का यही सन्देश है।
एक अच्छा तरीका
राष्ट्रसंत श्रीतुकडोजो
भारत में ही नहीं, अपितु सारे संसार में अधिक-से-अधिक शान्ति, सत्य व अहिंसा का प्रचार हो, यह मेरी हार्दिक कामना रही है । मुझ में अभी तक किसी सम्प्रदाय विशेष का कड़वापन प्रविष्ट नहीं हुमा है । यद्यपि यह मैं अनुभव करता हूँ कि प्रत्येक सम्प्रदाय, पंथ अथवा धर्म में अच्छे तत्त्व होते हैं। यदि ऐसा न होता तो धर्म की जड़ ही संसार से समाप्त हो जाती। धर्म या पंथ, जाति या संगठन, स्वार्थ और सत्ता के सीकचों में जकड़ जाते हैं, तब वे अपने तात्त्विक शिखर से नीचे गिरने लगते हैं और अहिंसा, सत्य तथा शान्ति जो कि धर्म के अभिन्न अंग होते हैं, छुटते चले जाते हैं और धर्म निष्प्राण बन जाता है। ऐसी परिस्थिति में धर्म को मिटाने की आवाज उठने लगती है। स्वयं उस धर्म के अनुयायी भी ऐसा करते हुए नहीं हिचकिचाते। वहां से क्रान्ति के नाम पर एक नया समाज जन्म लेता है। वह धर्म में फिर से प्राण-प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न करता है । यह क्रम बार-बार इस सृष्टि में चलता ही रहता है।
मैं प्राचार्यश्री तुलसी के व्यक्तित्व, उनकी कार्य-विधि व सुविश्रुत अणुव्रत-भान्दोलन से चिर-परिचित रहा हूँ। केवल परिचित ही नहीं, उमे निकट से भी देख चुका हूँ। कई बार उनसे मिलने का भी मुझे सुअवसर प्राप्त हुआ है। उनके प्रिय शिष्य और प्रान्दोलन के कर्मठ प्रचारक मुनिश्री नगराजजी मे भी मिलने का प्रसंग पड़ा है। प्राचार्यजी ने प्रणवत-आन्दोलन के द्वारा अपने अनुयायी और जनता को व्यसन-मुक्त कर सच्चरित्र व त्यागी बनाने का प्रशंसनीय प्रयत्न प्रारम्भ किया है । यह एक अच्छा तरीका है। उनका कार्य सुसम्बद्ध और एक सूत्र से चलता है, यह मुझे बहुत ही अच्छा लगा। प्राचार्यश्री तुलसी के उपदेशों य प्रणवतों की साधना से जनता को काफी लाभ होता है। उनका यह प्रचार प्रतिदिन बढ़े, यह मैं दिल से चाहता हूँ।