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अनुपम व्यक्तित्व
श्री फतह चन्द शर्मा 'प्राराधक' मंत्री, दिल्ली राज्य हिन्दी पत्रकार संघ
प्राचार्य तुलमी किसी सीमित क्षेत्र के प्राचार्य अथवा साधुमात्र नहीं है और न वे तेरापथ के केवल विशिष्ट मुनि ही रह गये है। अपने पच्चीस वर्षों की प्राचार्य काल की सतत साधना मे उनका स्थान इतना व्यापक बन गया है कि अब उनके सामने किसी एक छोटी इकाई-मात्र का कल्याण करने की कामना ही बहुत पीछे रह गई है। उनकी माधना ने मानव मात्र का हित-चिन्तन करना अपने जीवन का पुनीत उद्देश्य बना लिया है। जीवन में अनेक वर्ग के साथमहात्मानो को मुझे देखने का अवसर मिला है। किन्तु प्राचार्य तुलसी जैसा विलक्षण व्यक्तित्व मैं बहुत कम देख पाया। बहुत वर्ष पहले की बात है, जब प्राचार्य तुलसी पहली बार दिल्ली पधारे । दिल्ली के लिए प्राचार्यजी बिल्कुल नये थे, किन्तु उन्होंने दिल्ली की चकाचौध के सामने अपना समर्पण न करके दिल्लीवासियों को कुछ मोचने और करने पर मजबूर किया। इसी भूमि पर उन्होंने अणुव्रत जैसे देशव्यापी आन्दोलन की सृष्टि की। अणबत दिल्ली ही से अण का रूप लेकर देश व्यापी बना । प्राचार्य जी भारत की राजधानी में कई बार अपने पदार्पण से इस क्षेत्र के नागरिकों को एक विशेष प्रेरणा समय-समय पर देते रहे है । कुछ उद्बोधों से समाज के सभी वर्गों में चैतन्य पाया है। अनेक बार प्राचार्यजी के दिल्ली और दूसरे स्थानों पर दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त कर चुका हूँ। जब हजारों लोगों की भीड में उन्हें घिरा देखता हूं, यह भ्रम अपने आप हृदय में निकल जाता है कि वे किसी मम्प्रदाय विशेष के प्राचार्य है।
जिस देश में मेरी जन्म-भूमि है, उस प्रदेश में प्राचार्यजी का जब प्रागमन हुअा तब उन्हें अणव्रत-अान्दोलन के मंचालन में केवल उनके सम्प्रदाय का अथवा जैन समाज का ही महयोग नहीं मिला, अपितु ईमाई और ममलमानो का भी प्रान्दोलन को सक्रिय सहयोग मिला और उन सबने उममे प्रेरणा भी पाई। प्राचार्य जी ने उतरप्रदेश में ऐमा जान कर डाला कि बहुत कम व्यक्ति से रहे हैं जिन्होंने प्रगुत-आन्दोलन के प्रति अपना सौहार्द प्रदर्शित न किया हो। यह उनके प्रयत्न और प्रभाव का ही चमत्कार मानना है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश की नैतिक गतिविधियों को प्रात्माहन देने वाली मस्थानो में अणुव्रत समिति को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त करा दिया। अभी तक बड़ी-से-बड़ी दूसरी मस्थानों के नलिक अान्दोलन उत्तरप्रदेश मे चले और पनपे, किन्तु उन्हें जनता और सरकार दोनों का सहयोग समान रूप में नहीं मिला। अणुवन समिति के सम्बन्ध में यह बात बिल्कुल अपवाद मात्र है। इतना गहरा प्रभाव दूसरे व्यक्ति कम कर पाये है। इस मारी सफलता के पीछे जहाँ उनके सहयोगी कमठ कार्यकर्ताओं का योग है, वहां प्राचार्यजी की साधना, उनके द्वारा किया गया निर्णय और उसे क्रियान्वित करने की तीक्ष्ण बुद्धि है। इन सबका योग मिलाकर प्राचार्य तुलसी ने अपनी शान्तिप्रिय साधना से केवल राजस्थान ही में नहीं, सारे देश को बाध लिया है ।
समान शुभ चिन्तक
अनेक विशिष्ट व्यक्ति जब अपने पास बड़ी-से-बड़ी शक्तियों को पाते देखते है, तब उनके द्वार जनसाधारण के लिए बन्द हो जाते हैं । किन्तु प्राचार्यश्री तुलसी के सम्बन्ध में ऐसा नहीं कहा जा सकता। उनके यहाँ सभी को पाने का अवसर मिलता है। राष्ट्रपति और प्रधान मन्त्री से अणुयत-अान्दोलन की बात करने के बाद प्राचार्यजी का क्षेत्र वहीं नहीं समाप्त हो जाता। जिस तरह की चर्चा प्राचार्यजी इस आन्दोलन को लोकोपयोगी बनाने के लिए राष्ट्र नायकों से करते हैं, उमी प्रकार अपने आन्दोलन के मंचालन और संवर्धन करने के लिए वे सर्वसाधारण कार्यकर्तामों से भी बातचीत करते