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मध्याम ]
मानवता का नया मसीहा
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निष्कर्षतः, यही सिद्ध होता है कि वैज्ञानिक प्रगति से शस्त्रीकरण को बल मिलता है और मैद्धान्तिक नेतृत्व या क्षेत्र विस्तार की भावना मनुष्य को रण-अर्चना के लिए उद्धत करती है। मानवता तथा शान्ति की रक्षा के लिए एक ही उपाय है— निरस्त्रीकरण और वह सम्भव है, व्यक्ति व्यक्ति के नैतिकीकरण से
बुद्ध का कारण
मानवता के इस नये मसीहा श्राचार्य तुलसी ने युद्ध का एक ही कारण बतलाया है-अनैतिकता के प्रमाद मे अनियन्त्रित दुराचारिता की महत्वाकांक्षा, उन्माद और व्यामोह में पढ़ कर एक-दूसरे की सीमा से टकरा जाना चाहती है तथा संसार में ज्ञान के साथ-साथ मूढ़ता भी विकसित हुई है। यदि शान्ति की सुरक्षा करनी है, तो प्रत्येक व्यक्ति को पहले शान्ति को अन्तर्मुखी अर्चना करनी होगी। यदि मानवता की रक्षा करनी है तो सभी मानवों को सच्चे अर्थ में मानव बनना होगा, आसुरी प्रकृतियों का परित्याग करना होगा। निरस्त्रीकरण से भी सुन्दर समस्या का समाधान हृदय परिवर्तन द्वारा पारस्परिक सद्भावना तथा मंत्री से हो सकता है। निरस्त्रीकरण सामयिक भावुकता द्वारा भले ही युद्ध की प्राशका " को टाल दे। किन्तु युद्ध की भावना का परित्याग तो पारस्परिक मंत्री द्वारा ही हो सकता है। सद्भावना विहीन निरस्त्रीकरण हाथ-पैर से भी युद्ध करा सकता है, जबकि सद्भावना अणशक्ति को पकड़े हुए हाथों को भी एक-दूसरे के उत्कर्ष में सहयोगी बना कर मानवता की रक्षा कर सकती है।
दूसरी ओर मानवता के इस प्रहरी ने मनुष्य जीवन की सारी अनैतिक गतिविधियां का अध्ययन किया और मानवता की सही पीड़ा पहचानी । श्रप्रामाणिकता, मिलावट, अकारण हिमा, सामान्य असत्य, चारित्रिक निर्बलता, संग्रह एवं काम-पिपासा आदि को बढ़ावा देने वाली छोटी-छोटी अनैतिकताओं को भी खोज निकाला। इतना ही नहीं, इस ममीहा ने तो मनुष्य को कौन कहे जानवरों तक की पीड़ा का भी अनुमान किया अणुव्रतों के छोटे-छोटे बम हमारे जीवन अणु-परीक्षण करती हुई अनैतिकता को बड़े ही स्नेहपूर्ण ढंग से नैतिकता में परिवर्तन कर देते है । इस मसीहा के शब्दकोप में कही भी 'नाग' का शब्द नहीं है।
श्राधुनिक बुद्ध
यह तरुण तपस्वी समूची दुःखी मानवता को पुकार -पुकार कर एकत्र कर रहा है। इसकी पुकार पर मनुष्यों का विशाल समूह दौड़ रहा है और इस आधुनिक बुद्ध के चारों ओर ललचाई दृष्टि से खड़ा हो रहा है। इसकी पुकार सागर की प्रत्येक लहर पर छहर रही है, पर्वतों की बर्फीली चोटियों पर मचल रही है।
भौतिक प्रवाह मे अस्त मनुष्यों के बीच उनका यह नया माराम्य बड़े हो प्यार ये कहना है, "मुझे भी दो, भाइयो! मुझे अपने एक-एक दोष की भीस दो!"
तुम व्यक्ति को मिटा नहीं सकते ! तुम्हें समाज बन जाना है— एक बूंद और बूंदों के अगणित परितत्वों का संग्रह-सागर वह एक बूंद भी समर है, किन्तु सिन्धु वन कर
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अण और विराट के मधुर सामंजस्य का यह महान् प्रणेता माज लोगों में मानन्द बांट रहा है।
अणु-परीक्षण का काल अभी भूत नहीं हो सका। सहारा की रेत के बाद अब उसके क्रूर चरण वायुमण्डल और भू-गर्भ में विचरण कर रहे है। मानवता का परोक्ष विनाश प्रारम्भ है; चाहे युद्ध द्वारा प्रत्यक्ष विनाश अभी दूर हो। किन्तु अत्रतों की आध्यात्मिक अणु-शक्तियों का परीक्षण अब समाप्त हो चुका है। वे जीवन के एक-एक दीप सिद्ध हो चुके हैं। आज मानवता के इस मसीहा को प्रकाश फैलाते हुए पच्चीस वर्ष पूर्ण हुए। इसकी धवल जयन्ती मनाई जा रही
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है। मैं माफ कह दूं यह आचार्यश्री तुलसी की धवल जयन्ती नहीं: मानवता के भविष्य का रजत समारोह है। गगनमण्डल के जय पोप, आचार्य तुलसी के लिए नहीं, महिमा और सत्य की विजय का पंखनाद है। प्राचार्यश्री तुलसी को देख कर संसार को फिर एक बार विश्वास हो चला है- "मानवता अमर है, शान्ति अमिट है, सत्य की विजय होती है, अहिसा परम धर्म है और मंत्री तथा सद्भावना का प्राधार ही सच्चा निरस्त्रीकरण है।"