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अवतारी पुरुष
श्री परिपूर्णानन्द वर्मा
भारत संतों का देश है। हमारे महाँ एक से एक बढ़कर संत पैदा हुए हैं। उन्हीं की कृपा तथा प्रसादी से यह देश नैतिक, सामाजिक, तथा धार्मिक दृष्टि से सब देशों से महान है। यह गर्व की बात है। यह मिथ्या अहंकार नहीं है। मैंने दो बार संसार का भ्रमण किया है । मैं उसी आधार पर यह बात दावे के साथ लिख रहा हूँ। पुलिस तथा जेल के महकमे से मेरा घना सम्बन्ध है। मैं अपराध शास्त्र का विनम्र सेवक हूँ। इसी नाते मैं कह सकता है कि धनी-से-धनी, उग्र समाजवादी तथा बर्गवादी, प्रजातन्त्रीय तथा पूंजीवादी देशों में प्राज जितनी अनंतिकता तथा भ्रष्टाचार है, उतना भारत में नहीं है । किन्तु संसार के दृषित वातावरण से हम कब तक बचे रह सकते हैं । हमको भी उसी गर्त में जाने की आशंका है। हम अभी तक सम्हले हुए हैं इसलिए कि अब भी बड़े-बड़े साधु संत जन्म लेकर हमको उँगली पकड़ कर सही रास्ते पर चला देते हैं।
सुमन्तभद्राचार्य हमें एक बड़ी सीख दे गए थे। वह थी मानवता की। मानवता के सेवक साधु के चरणों मे सिर नवाते समय एक चीज ध्यान में रखते हैं। वह यह कि उनके चरण वहाँ नहीं हैं, जहां दिखाई पड़ते हैं, वहां नहीं हैं, जहाँ हमारा सिर टिकता है। उनके चरण उन दीन दुःखी आत्माओं की टोलियों और बस्तियों में हैं, पीडित तथा पतित कहे जाने वालों की गोद में हैं, अतएव बड़े-बड़े धनी मानी लोग जो संतों की सेवा को ही सब कुछ समझते हैं, वे एक बड़ी भारी भूल करते हैं । संतों के कथन का पालन करने से उनकी असली मेवा होती है।
मैं ऊपर लिख पाया हूँ कि हमारे देश में बड़े-बड़े संत सदैव आते रहे हैं-अवतार लेते रहे हैं। ऐसे अवतारी, पुरुष प्राचार्यश्री तुलसी भी हैं। मैंने जब कभी इनसे भेंट की, इनसे बातें की, इनका उपदेश सुना, मुझे बड़ी प्रेरणा मिली। मुझे ऐसा लगा कि उनके उपदेशों का अनुकरण कर हम अपने देश तथा समाज को बहुत ऊंचा उठा सकते हैं ।
माचार्यश्री तुलसी जैसे संत भाग्य से पैदा होते हैं। जितना हो सके हम इनसे ले लें-उपदेश और इनको विकट तपस्या का वरदान और उसी के सहारे अपनी नया चलाएं।
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