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________________ १७४ ] प्राचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन अन्य तपसा देवा मृत्युमपाध्नत (वेद)। ब्रह्मचर्य अहिंसा का स्वात्मरमणात्मक पक्ष है। पूर्णब्रह्मचारी न बन सकने की स्थिति में एक पत्नीवत का पालन अणुवती के लिए अनिवार्य ठहराया गया है। ५.अपरिपह-१. 'इच्छापागाससम प्रणांतया (जैन),२. तहल्लायो सम्बदुखं जिनाति (बोर),३. मागृषः कस्यस्विडनम् (वैदिक) परिग्रह से तात्पर्य संग्रह से है । किसी भी सद्गृहस्थ के लिए संग्रह की भावना से पूर्णतया विरत रहना पसम्भव है। अत: अणुव्रत में अपरिग्रह से संग्रह का पूर्ण निषेध का तात्पर्य न लेते हुए अमर्यादित संग्रह के रूप में ग्रहीत है। अणुव्रती प्रतिज्ञा करता है कि वह मर्यादित परिणाम मे अधिक परिग्रह नहीं करेगा। वह घूस नहीं लेगा । लोभवश रोगी की चिकित्सा में अनुचित समय नहीं लगायेगा। विवाह प्रादि प्रमंगों के सिलसिले में दहेज नहीं लेगा, मादि। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रणवत विशद्ध रूप में एक नैतिक सदाचरण है और यदि इस अभियान का सफल परिणाम निकल सका तो वह एक सहस्र कानूनों से कहीं अधिक कारगर सिद्ध होगा और भारत या अन्य किसी भी देश में ऐसे माचरण से प्रजातन्त्र की सार्थकता चरितार्थ हो सकेगी। प्रजातन्त्र धर्मनिरपेक्ष भले ही रहे, किन्तु जब तक उसमें नैतिकता के किसी मर्यादित मापदण्ड की व्यवस्था की गुंजाइश नहीं रखी जाती, तब तक वह वास्तविक स्वतन्त्रता की सृष्टि नहीं कर सकता और न ही जनसाधारण के आर्थिक स्तर को ऊँचा उठा सकता है । स्वतन्त्रता की प्रोट में स्वच्छन्दता और ग्राथिक उत्थान के रूप में परिग्रह तथा शोषण को ही खुलकर खेलने का मौका तब तक निस्संदेह बना रहेगा, जब तक इस प्राणविक युग में विज्ञान की महत्ता के साथ-साथ अणुव्रत-जमे किसी नैतिक बन्धन की महत्ता को भी भलीभांति आँका नहीं जाता। विश्व-शान्ति की कुजी भी इसी नैतिक बन्धन में निहित है । वस्तुतः पंचशील, सह-अस्तित्व, धार्मिक सहिष्णुता अणना के अंगोंयांग जैसे ही है । अनः प्राचार्यश्री तुलमी का अणुव्रत-आन्दोलन अाज के अणुयुग की एक विशिष्ट देन ही समझा जाना चाहिए। भारत विश्व में यदि प्राचीन अथवा अर्वाचीन काल में किसी कारण सम्मानित रहा अथवा आज भी है तो अपने सत्य, त्याग, महिमा, परोपकार (अपरिग्रह) आदि नैतिक गुणों के कारण ही, न कि अपनी सैन्य शक्ति अथवा भौतिक शक्ति के कारण। किन्तु, प्राज देश में जो भ्रष्टाचार व्याप्त है और नैतिक पतन जिस सीमा तक पहुँचा सका है, उसे एक 'नेहरू का आवरण' कब तक ढके रहेगा? एक दिन तो विश्व में हमारी कलई खल कर ही रहेगी और तब विश्व हमारी वास्तविक हीनता को जान कर हमारा निरादर किये बिना न रहेगा। प्रतः भारतवासियों के लिए प्राणविक शक्ति के स्थान में प्राज अणुव्रत-अान्दोलन को शक्तिशाली बनाना कहीं अधिक हितकारी सिद्ध होगा और मानव, राष्ट्र तथा विश्व का वास्तविक कल्याण भी इसी में निहित है। प्राचार्यश्री तुलसी का वह कथन, जो उन्होंने उस दिन अपने प्रवचन में कहा था, मुझे अाज भी याद है कि "एक स्थान पर जब हम मिट्टी का बहुत बड़ा और ऊँचा ढेर देखते हैं तब हमें सहज ही यह ध्यान हो जाना चाहिए, किमी अन्य स्थान पर इतना ही बड़ा और गहरा गड्ढा खोदा गया है।" शोषण के बिना संग्रह असम्भव है। एक को नीचे गिराकर दूसरा उन्नति करता है । किन्तु जहाँ बिना किसी का शोषण किये, बिना किसी को नीचे गिराये सभी एक साथ प्रात्मोन्नति करते हैं, वही है जीवन का सच्चा और शाश्वत मार्ग। 'अण्वत' नैतिकता काही पर्याय है और उसके प्रवर्तक प्राचार्यश्री तुलसी महात्मा तुलसी के पर्याय कहे जा सकते हैं। . ..
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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