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अन्याय द्वितीय संत तुलसी
[ १७१ तियाँ और सभी कार्य अन्यों के लिए ही होते माए है। परोपकाराय सतां विभूतयः । फिर प्राचार्यश्री तुलसी ने तो प्रारम्भ से ही अपने सभी कृत्य परार्थ ही किए हैं और परार्थ को ही स्वार्थ मान लिया है। यही कारण है कि उनके प्रणवतआन्दोलन में बह शक्ति समायी हुई है जो परमाणु शक्ति-सम्पन्न बम में भी नहीं हो सकती; क्योंकि अणुव्रत का लक्ष्य रचनात्मक एवं विश्वकल्याण है और प्राणविक शस्त्रों का तो निर्माण ही विश्व-संहार के लिए किया जाता है । एक जीवन है तो दूसरा मृत्यु । तो भी जीवन मृत्यु से सदा ही बड़ा सिद्ध हुअा है और पराजय मृत्यु की होती है, जीवन की नहीं। नागासाकी तथा हिरोशिमा में इतने बड़े विनाश के बाद भी जीवन हिलोरें ले रहा है और मृत्यु पर अट्टहास कर
वास्तविक मृत्यु
मानव की वास्तविक मृत्यु ननिक ह्रास होने पर होती है। नैतिक आचरण से हीन होने पर वस्तुतः मनुष्य मृतक से भी बुरा हो जाता है, क्योंकि साधारण मृत्यु होने पर 'आत्मा' अमर बनी रहती है। न हन्यते हन्यमाने शरीरे (गीता) । किन्तु नैतिक पतन हो जाने पर तो शरीर के जीवित रहने पर भी 'आत्मा' मर चुकती है और लोग ऐसे व्यक्ति को 'हृदयहीन', 'अनात्मवादी', 'मानवता के लिए कलक' कहकर पुकार उठते हैं। इसी प्रकार नैतिकता से हीन राष्ट्र चाहे जैसा भी श्रेष्ठ शासनतन्त्र क्यों न अगीकार करे, वह जनता की आत्मा को मुखी तथा सम्पन्न नहीं बना सकता। ऐसे राष्ट्र के कानून तथा समस्त सुधार-कार्य प्रभावकारी सिद्ध नहीं होते और न उसकी कृतियों में स्थायित्व ही पाने पाता है; क्योंकि इन कृतियों का प्राधार सत्य और नैतिकता नहीं होती, अपित एक प्रकार की अवसरवादिता अथवा अवसरसाधिका वृत्ति ही होती है । नैतिक संबल के बिना भौतिक सुख-साधनों का वस्तुनः कोई मूल्य नहीं होता। प्रणु और अणुव्रत-प्रान्दोलन
माज के युग में प्राणविक शक्ति का प्राधान्य है और इसीलिए इसे अण युग की संज्ञा देना सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होता है। विज्ञान आज अपनी चरम सीमा पर है और उसने अणमात्र में भी ऐसी शक्ति खोज निकाली है, जो अखिल विश्व का संहार कुछ मिनटों में ही कर डालने में समर्थ है। इस सबंसहारकारी शक्ति से सभी भयभीत हैं और ततीय विश्वव्यापी युद्ध के निवारणार्थ जो भी प्रयास प्रकारान्तर मे आज किये जा रहे है, उनके पीछे भी भय की यही भावना समायी हुई है।
पश्चिमी राष्ट्रों की मंगठित शक्ति में भयभीत होकर रूस ने पुनः प्रावक शस्त्रास्त्रों के परीक्षण की घोषणा ही नही कर दी है, वस्तुतः वह दो-चार परीक्षण कर भी चका है। रूस के इस आचरण की स्वाभाविक प्रतिक्रिया अमरीका पर हुई है और अमरीका ने भूमिगत आणविक परीक्षण प्रारम्भ कर दिये है।
अमरीका प्रक्षेपास्त्रो की होड़ में रूस से पहले से ही पिछड़ा हुआ है और इसलिए रूस को उस दिशा में और अधिक बढ़ने का मौका वह कदापि नही दे मकता। साथ ही, विश्व के अन्य देशों पर भी इसकी प्रतिक्रिया हुई है और बेल्प्रेड में प्रायोजित तटस्थ देशों का सम्मेलन इस घटना से कदाचित् अत्यधिक प्रभावित हुमा है; क्योंकि सम्मेलन शुरू होने के दिन ही रूस ने अपनी यह आतंककारी घोषणा की है। इस प्रकार प्राज का विश्व प्राणविक शक्ति के विनाशकारी परिणाम से बुरी तरह अस्त है। मभी ओर 'त्राहि-त्राहि-सी मची हुई है; क्योकि युद्ध शुरू हो चकने पर कदाचित् कोई 'त्राहि-त्राहि' पूकारने के लिए भी शेष न रह जायेगा। इस विषम स्थिति का रहस्य है कि शान्ति के प्रावरण में युद्ध की विभीषिका सर्वत्र दिखाई पड़ रही है ? परिग्रह और शोषण की जनयित्री
जब मानव भौतिक तथा शारीरिक सुखों की प्राप्ति के लिए पाशविकता पर उतर पाता है और अपनी प्रात्मा की पान्तरिक पुकार का उसके समक्ष कोई महत्व नहीं रहता, तब उसकी महत्त्वाकांक्षा परिग्रह और शोषण को जन्म