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प्राचापंधी तुलसी अभिमसन प्रय
[ प्रथम
के बताये हुए मार्ग पर चलती।"
सात्विक विचारधारा की अपेक्षा
आज अनेक व्यक्ति प्रापके सम्पर्क के लिए उत्सुक रहते है। उसका मूल कारण है--मापका प्रसरणशील व्यक्तित्व । लाखों व्यक्तियों ने प्रापका साक्षात सम्पर्क किया है। आपके नाम और नैतिक उपक्रमों से तो करोड़ों व्यक्ति परिचित हैं। आपके प्रति जन-मानस की जो श्रद्धा और भावना है, उसका सही चित्रण इस लघुकाय निबन्ध में असम्भव है, किन्तु यह कहने का लोभ भी संवृत नहीं कर सकता कि प्राचीन और अर्वाचीन युगल विचारधाराएं आपके प्रति प्राशंसोपचित है। यद्यपि पाप किसी को भौतिक समद्धि अथवा स्वराज्य-प्रदान नहीं करते, किन्तु आपके प्रेरणा पीयूष से मानव सहज उन्मार्ग को छोड़ कर सन्मार्ग को ग्रहण कर जीवन का वास्तविक लक्ष्य प्राप्त करने में समर्थ हो सकता है। विविध समस्यायों को जड़ पाप विचार-दारिद्रय को ही मानते हैं। मनुष्य का वर्तमान और भविष्य दोनों विचारों पर ही अवलम्बित है। शुद्ध और सात्विक विचारधारा की अपेक्षा है। इसके अभाव में अनेक समस्याओं का उद्गमन होता है।
__ अापके विशाल व्यक्तित्व के अनेक कारणों में मैं प्राचार को प्राथमिकता देता हूँ। जिसका माचार प्राकाश की तरह विशद और सुस्थिर है, उसका व्यक्तित्व भी अनन्त व असीम है। प्राचारहीन व्यक्तित्व बिना नीव के प्रासाद तुल्य होता है। किसी का व्यक्तिस्व प्रायोगिक होता है और किसी का नैसर्गिक । पापका व्यक्तित्व विधारमक है। प्राचार की अपेक्षा नैसर्गिक और विचार-दारिद्रय को मिटाने की अपेक्षा प्रायोगिक । प्रतः पापके व्यक्तित्व के मागे अनोखा विशेषण युक्तिसंगत ही है।