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उत्कट साधक श्री मिश्रीलाल गंगवाल
वित्तमन्त्री, मध्यप्रदेश सरकार यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि प्राचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। प्राचार्यश्री तुलसी अहिंसा और सत्य के उपासक तथा भारतीय संस्कृति और दर्शन के उत्कट साधक हैं । वे सरल, मृदुभाषी 'माधु' शब्द को वास्तविक रूप में चरितार्थ करने वाले प्रादर्श पुरुष हैं। उनके समक्ष किसी भी बुद्धिजीवी का मस्तक श्रद्धा से नत हो जाता है। उनकी गणना देश के गणमान्य साहित्य सेवियों और संस्कृत तथा दर्शन के गिने-चने विद्वानों में की जाती है। उनसे अनेक व्यक्तियों को साहित्य और दर्शन में रुचि रखने की प्रेरणा मिली तथा उनके सान्निध्य मे बैठ कर अनेक जनोपयोगी पुस्तकों का सृजन करने का अनकों को अवसर मिला। उन्होंने केवल समाज काही मार्ग-दर्शन नहीं किया वरन साधसमाज में फैली अनेक बुराइयों का उन्मूलन करने के लिए संस्कृति, दर्शन और नैतिकता को नया मोड़ देकर अध्यात्म का सही मार्ग प्रशस्त किया । उनका व्यक्तित्व तथा उनके द्वारा जन हित में किये गए अनेक कार्य दोनों ही एक-दूसरे के पूरक होकर जन-मानस के लिए श्रद्धा की वस्तु बने हैं। ऐसे महान् व्यक्ति का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित कर निश्चित ही समाज के लिए एक बड़ा उपादेय कार्य किया जा रहा है। ममें पूर्ण विश्वास है कि इससे जन-मानस को प्रात्मीय बोध प्राप्त होगा। मैं अभिनन्दन ग्रन्थ को हृदय मे मफलता चाहता है।
महान् आत्मा डा० कामताप्रसाद जैन, पी-एच० डी०, एम० पार० ए० एस० संचालक-अखिल विश्व अन मिशन
मुवासित फूलों की सुगन्धि अनायास ही सर्वत्र फैलती है । तदनुरूप जो महान प्रात्मा अपना समय ज्ञानोपयोग रूप आत्मानुभूति-चर्या में बिताता है उसका यश भी दिईदगन्त में फैल जाता है। कहा भी है-णाणोपयोग जो कालगमइ तसु तणिय कित्ति भुवणयला भमह । श्रद्धेय आचार्य तुलसीजी इसी श्रेणी के मंत है, महान आत्मा हैं । गत बुद्ध जयन्ती समारोह के अवसर पर जब दिल्ली में जैनों ने जो साँस्कृतिक सम्मेलन किया था, उसी में हमें उनके दर्शन करने का सौभाग्य है प्राप्त हुआ। मंच पर श्वेत वस्त्रों में सज्जित वे बड़े ही मौम्य और शान्त दिखाई पड़ रहे थे। उनके हृदय की शभ्र उज्ज्वलता मानो उनके वस्त्रों को चमका रही थी। उनका ज्ञान, उनकी लोकहित भावना और धर्म-प्रसार का उत्साह अपूर्व और अनुकरणीय है। प्रणवत-पान्दोलन के द्वारा वे सर्वधर्म का प्रचार सभी वर्गों में करने में सफल हो रहे हैं। एक ओर जहाँ वे महामना राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री नेहरू को सम्बोधित करते हैं तो दूसरी ओर गाँव और खेतों के किसानों और मजदूरों को भी सन्मार्ग दिखाते हैं। उनका संगठन देखते ही बनता है ? वे सच्चे श्रमण हैं। उनका अभिनन्दन सार्थक तभी हो, जब हम सब उनकी शिक्षा को जीवन में उतारें। इन शब्दों में मैं अपनी श्रद्धा के फूल उनको अर्पित करता हुआ उनके दीर्घमायु की मंगल कामना करता हूँ।