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सर्वोत्कृष्ट उपचार
| बृन्दावनलाल वर्मा, झांसी
श्री
परन्तु
प्राचार्यश्री तुलसी के दर्शनों का सौभाग्य तो कभी प्राप्त नहीं हुआ, मैं पत्रों में प्रकाशित उनकी वाणी को नत मस्तक होकर पढ़ा करता हूँ । हमारे देश के लिए इस समय ऐसे महान् सत्पुरुष की परम आवश्यकता है । समाज और राष्ट्र का ही वह हिल नहीं कर रहे है। प्रत्युत मानव भर का भी। राष्ट्र में कुछ प्रवृत्तियाँ विघटन की ओर हैं। प्राचार्य श्री घृणा श्रौर द्वेष को तिरोहित करवाकर समाज को संगठित सच्चे और कल्याणकारी रूप में संगठित करने का शुभ कार्य कर रहे हैं। साथ ही वे व्यक्ति के विकास और उत्थान पर भी ध्यान दिये हुए हैं। तभी तो उन्होंने कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति कम-से-कम पन्द्रह मिनट प्रतिदिन स्वाध्याय करे और एकाग्र मन होकर किसी स्वस्थ विषय का चिन्तन करे। आजकल जहाँ देखिये वहाँ जीवन पर तरह-तरह का बोझ बढ़ता जा रहा है। व्यक्ति में बेचैनी बढ़ रही है। इसके कारण समाज में खटपट और व्यक्तियों में नाना प्रकार के रोग फैन रहे हैं। माचायंत्री का बतलाया हुम उपचार सर्वोत्कृष्ट है । जो जिस प्रकार इसे अपना सके, प्रवश्य अपनाये और उसका अभ्यास करे। मुझे रत्तीभर भी सन्देह नहीं कि इसमें व्यक्ति को सन्तुलन प्राप्त होगा और साथ ही समाज को सगठन एवं उत्थान ।
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आध्यात्मिक जागृति
सवाई मानसिंहजी महाराजा, जयपुर
आचार्यश्री तुलसी द्वारा प्रवर्तित मणुव्रत प्रान्दोलन ने गत बारह वर्षों में जो प्रगति की है, वह आदातीत व सन्तोषप्रद है। इस भीषण संघर्ष के युग में जनता को अध्यात्म मार्ग प्रदर्शन की आवश्यकता है। भौतिक जागृति में अधिक महत्त्वपूर्ण हमारी प्राध्यात्मिक जागृति है, जिसके अभाव में जीवन मुखी नहीं बन सकता। संसार का वास्तविक कल्याण तभी हो सकता है, जबकि जन-साधारण के चरित्र की ओर ध्यान दिया जाये। आचार्यश्री तुलसी ने इस दिशा में चारित्रिक जागृति का एक ठोस कदम रखा है। सबसे बड़ी विशेषता इस आन्दोलन की यह है कि बिना किसी जाति, सम्प्रदाय और वर्ग-भेद के जनता इसमें भाग लेकर लाभान्वित हो रही है। राष्ट्रव्यापी इस पुनीत कार्य की प्रगति में जिन महानुभावों ने अपना योग दिया है, वे भी बधाई के पात्र हैं।
मेरी हार्दिक कामना है कि नैतिक निर्माणकारी व जन-जीवन की शुद्धि का यह उपक्रम पूर्ण सफलता प्राप्त करे एवं अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास सिद्ध हो।
प्राचार्यश्री तुलसी का तपः पूत जीवन सुषुप्त मानवता को उबुद्ध करने में संजीवनी का कार्य कर रहा है अशान्ति और हिंसा से प्रताड़ित समाज को उनके उपदेशों से राहत की अनुभूति होगी, इसमें सन्देह नहीं है।
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