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आध्यात्मिकता के धनी श्री प्रफुल्लचन्द्रसेन, मात्र मंत्री, बंगाल
प्राचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत-पान्दोलन का प्रवर्तन कर भारत के धर्म गुरुषों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण उपस्थित किया है। आज जबकि जाति, प्रान्त, भाषा व धर्म के नाम पर अनेकानेक झगड़े खड़े हो रहे हैं, स्वार्थ-भावना की प्रबलता है, साम्प्रदायिकता निष्कारण ही पनप रही है, प्राचार्यश्री तुलसी द्वारा नैतिक क्रान्ति का आह्वान मचमुच ही उनके दूरदर्शी चिन्तन का परिणाम है । प्राचार्यजी विशुद्ध मानवतावादी हैं और प्रत्येक वर्ग में व्याप्त बुराई का निराकरण करना चाहते है । मुझे उनके दर्शन करने का अनेकशः सौभाग्य मिला है और निकट वठ कर उनके पवित्र उपदेश मुनने का भी। वे प्राध्यात्मिकता के धनी हैं और उनमें साधना का प्रखर तेज है। वे भारतीत ऋषि-परम्परा के वाहक हैं, अत: भारतीय जनता को उन्हें अपने बीच में पाकर गौरव की अनुभूति भी है। उनके प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त करना प्रत्येक देशवामी का अपना कर्तव्य है।
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आप्त-जीवन में अमृत सीकर
श्री उदयशंकर भट्ट प्राणयिक युद्ध को रोकने का एकमात्र उपाय अण्वत-साधना है । यद्ध यो को नहीं रोक सकते। मरण के साधनों से जीवन नहीं मिल सकता। शान्ति, अपरिग्रह, क्षमा, प्रात्म-मंतोष, सर्वभूतहिते रति ही जीवन के कल्याण-मार्ग है। मनुष्य का सबसे बड़ा दुःख तृष्णानों के पीछे भटकना है। इस भटकाव का कहीं अन्त नहीं है। मृगतृष्णा प्रज्ञान संभृत है, जो निरन्तर एक तृष्णा में दूसरी, तीमर्ग इस प्रकार अनन्त तृष्णाओं को उत्पन्न करती है। तृष्णा अज्ञानान्ध तम है। उसमें स्वार्थों का प्रकाश है, प्रकाशाभास; एवं कामना की पूर्ति मे अन्य कामनाप्रो, अनन्त कामनापों के चक्कर में हमारा जीवन भ्रमित होकर अप्ति का ग्राम हो जाता है। ऐसी अवस्था में आत्म-संतोष, प्रात्म-चिन्तन ही हमें एकाग्र, शान्ति, मर्धन्य सुख, परम तृप्ति दे मकता है।
प्राचार्यश्री तुलसी ने हमें इस दिशा में प्राप्त-जीवन में अमन सीकर की तरह नई दृष्टि दी है। महिमा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, क्षमा, दया के अक्षय अस्त्र देकर प्राजीवनीय तत्त्वों से संघर्ष करके जीवन का प्रतिष्ठा-प्रण दान किया है। अहिमा मार्वकालिक अम्त्र है। भले ही वह कुछ काल के लिए निबल दिखाई दे, किन्तु उससे युगयुगान्तर प्रकाशित होते हैं और इससे पारस्परिक जीवन की चरम एवं परम प्राणमयी धाराएं गतिमान होती रहती है। सत्य आचरण, मत्य के प्रति निष्ठा और स्वयं सन्यात्मा के दर्शन होते हैं, जो हमारे जीवन का चरम उल्लास है। मेरी कामना है, प्राचार्यश्री तुलसी के जीवन चिन्तन से निकले 'मणव्रत' के उद्गार निरन्तर हमारे लिए चिर सुख के कारण बनें। हम अपने में अपने सुख को खोजकरमात्म-प्रकाशा हों। मेरा प्राचार्य तुलसी को शत-शत अभिवन्दन ।