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अध्याय ] भगवान् महावीर और बुद्ध की परम्परा में
[ १३६ किसान-बस, महाराज ! हम तो एक रुपया ही चढ़ाते हैं और आपके पास तो अनेक भक्त लोग आते हैं, एकएक रुपया देंगे तो भी बहुत हो जायेंगे।
प्राचार्यश्री-पर बतायो रुपये का हम करें क्या ? किसान-किसी धर्मार्थ काम में लगा देना।
प्राचार्यश्री-पर धर्म के लिए पैसे की जरूरत नहीं होती। वह तो प्रात्मा से ही होता है। तब फिर साध्मो के पास पैसा किस काम का? हम तो पैसा नहीं लेते । यह लो तुम्हारा रुपया।
किसान को बड़ा आश्चर्य हुआ। कहने लगा-महाराज ! हमने तो प्राज तक ऐसा साधु नहीं देखा जो पंसा नहीं लेता हो। वह कुछ दुविधा में पड़ गया। सोचने लगा पुष्करजी में नहाने से पाप नहीं उतरते और उन संतों के दर्शन करने से कोई कल्याण नहीं हो सकता जो पंसा रखते हैं, तब फिर पुष्करजी जाऊँ या नहीं जाऊँ ?
प्राचार्यश्री-भाई ! वह तुम तुम्हारी जानो। हमने तुम्हें रास्ता बता दिया है। करने में तुम स्वतन्त्र हो। किसान कुछ विचार कर बोला-अच्छा महाराज ! अब पुष्कर जी नही जाऊँगा। आपके पास ही पाऊँगा। प्राचार्यश्री-पर यहाँ पाने मात्र से कल्याण नहीं होने वाला है, कुछ नियम करोगे तो कल्याण होगा। किसान-क्या नियम महाराज! प्राचार्यश्री ने उसे प्रवेशक प्रणवती के नियम बताये और वह उसी समय सोच-समझ कर अणुवती बन गया।
भगवान् महावीर और बुद्ध के हाथ में कोई राज्य सत्ता नहीं थी, पर उन्होंने देश के मानस को बदलने के लिए जो प्रयास किया है, वह सम्भवतः कोई भी राज्य-सत्ता नहीं कर सकती। प्राचार्यश्री ने भी यही कार्य करने का प्रयास किया है। सत्ता और उपदेश
एक बार प्राचार्य श्री महाराष्ट्र में विहार कर रहे थे। बीच में एक गांव में सड़क पर ही अनेक लोग इकटे हो गये। कहने लगे-प्राचार्य जी! हमें भी कुछ उपदेश देते जायं। अपनी शिष्य मंडली के साथ प्राचार्यश्री वहीं वृक्ष की छाया में बैठ गये और पूछने लगे-क्यों भाई ! शराब पीते हो? ग्रामीण एक-दूसरे का मुंह देखने लगे।
प्राचार्यश्री-तुम्हारे यहाँ तो शराबबन्दी का कानन है न? ग्रामीण-हाँ महाराज! है तो सही।
प्राचार्यश्री-तब फिर तुम शराब तो कैसे पीते होंगे? कोई नहीं बोला। चारों ओर मौन था। फिर प्राचार्यश्री कहने लगे-देखो भाई ! हम सरकार के आदमी नहीं हैं, हम तो साधु हैं। तुम हमसे डरो मत। सच्ची-सच्ची बात बता दो। धीरे-धीरे लोग खुलने शुरू हुए और कहने लगे-महाराज ! कानून है तो बाहर है । घर में तो नहीं है न? अतः लुकछिप कर पीने से कौन गवाह करने वाला है।
आचार्यश्री--पर मरकार के प्रादमी तो देख-रेख करने पाते होंगे? ग्रामीण-देख-रेख कौन करता है महाराज ! वे तो उल्टे हमारे घर पीकर जाते हैं।
प्राचार्यश्री ने हम साधुनों से कहा-यह है कानून की विडम्बना । पर उपस्थित समुदाय की ओर उन्मुख होकर कहने लगे-देखो भाई ! शराब पीना अच्छा नहीं है। इससे मनुष्य पागल बन जाता है।
ग्रामीण-बात तो ठीक है महाराज! पर हमारे से तो यह छूटती नहीं है। आचार्यश्री-देखो तुम मनुष्य हो । मनुष्य शराब के वश हो जाये, यह अच्छा नहीं, छोड़ दो इसे । ग्रामीण-पर महाराज ! यह हमें बहुत प्यारी हो गई है।
प्राचार्यश्री--प्रच्छा तो तुम ऐसा करो, एकदम नहीं छोड़ सकते तो कुछ दिनों के लिए तो छोड़ दो। उपस्थित जनसमुदाय में से अनेक लोगों ने यथाशक्य मय पीने का त्याग कर दिया। कुछ ने अपनी मर्यादा कर ली कुछ व्यक्तियों ने बिल्कुल भी त्याग नहीं किया। एक नौजवान भाई पास में खड़ा था। प्राचार्यश्री ने उसका नाम पूछा, तो वह भाग