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तुलसी आया ले 'चरैवेति' का नव सन्देश
श्री कोतिनारायण मिश्र, एम० ए०
फैला जब चारों ओर तिमिर का अन्ध जाल अन्याय-अनय-हिंसा का नित दंशन कराल, शोषण-मर्दन की पीड़ा से जब त्रस्त देश तुलसी पाया ले 'चरैवेति' का नव सन्देश।
इसकी वाणी में नवयुग का नूतन प्रकाश संस्कृति-दर्शन का तेज अमित जीवन-विकास,
आदर्श-समुज्ज्वल शान्त-स्निग्ध-शुचि-सौम्य-रूप
गढ़ता विकृतियों में मानव-प्राकृति अनूप । यह तुम्हें न कोई नयी बात कहने जाता या तर्क-वितर्कों में न तुम्हें यह उलझाता; जो भूल चुके तुम मार्ग उसे फिर अपनायो सात्विक जीवन के तत्त्वों से परिचय पाओ।
संयमित बनालो माज कि अपने जीवन को परिग्रह की ओर न ले जामो अपने मन को, संकल्प-वरण कर जीवन को पावन कर लो
अन्तर ज्योतित करने का व्रत धारण कर लो। तुम भूल चुके उस तीर्थकर का शुभ सन्देश जिसकी किरणों से ज्योतित होता था स्वदेश, यह आज उसी का गान सुनाने आया है जागो-जागो यह तुम्हें जगाने पाया है।
तुलसी का 'अणुव्रत' जागृति का अभिनव प्रतीक अध्यात्मवाद का परिपोषक, सद्धर्म-लीक; दिग्भ्रान्तों का वह करता है पथ-निर्देशन सभ्यता-संस्कृति के तत्त्वों का अनुशीलन।