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आञ्जनेय तुलसी
प्राचार्य जुगलकिशोर शिक्षा मंत्री, उत्तरप्रदेश सरकार
संजीवन विद्या का रहस्य
मानव विचार, मनन और मन्थन में अनेकानेक शक्तियों का पुंज है। वह अपने जीवन को साधना द्वारा नितान्त उज्ज्वल बना सकता है। वैसे तो प्राणीमात्र में सिद्धत्व और बुद्धत्व जैसे गुणों की उपलब्धि की सम्भावनाएं हैं, किन्तु वे अपनी शारीरिक एवं मानसिक दुर्बलताओं के कारण इसके महत्व को हृदयंगम करने में बहुत कम क्षमता रखते हैं। मानव के अलावा धन्य प्राणियों का यह दुर्भाग्य है कि वे उसकी भांति अपने हिताहित व कृत्याकृत्य को परल नहीं सकते । विवेकबुद्धि का उनमें अभाव है। इस भाँति केवल मानव ही एक ऐसा विचारशील एवं मननशील प्राणी है, जिसमें अपने हित-अहित और कृत्य प्रकृत्य को परखने की अद्भुत क्षमता पायी जाती है। मानव ही अपने जीवन को संजीवन विद्या के रहस्य को समझ सकता है।
यह सब होते हुए भी प्राज परिस्थिति कुछ भिन्न-सी नजर आती है। किसी कारणवश आज मानव की वह चेतना शक्ति मन्द पड़ गई है। यही मूलभूत कारण है, जिससे वह स्वार्थ में अन्धा होकर धनैतिकता की घोर अग्रसर हो गया है। उसके जीवन में सात्विकता की कमी हो रही है और अवांछनीय तत्व घर करने लगे हैं। मानव मानव में विश्वास की भावना का ह्रास हो रहा है। यह दूसरों के अधिकारों की परवाह नहीं करता। ऐसी स्थिति में उसके विवेक को जगाने का कोई उपक्रम चाहिए। अनैतिकता की व्याधि को स्वाहा करने के लिए कोई प्रमोघ श्रौषधि चाहिए।
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मानव की यह सुषुप्त चेतना तभी पुनर्जागृत हो सकती है जब उसमें चरित्र का वन हो उसके प्रत्येक कार्य में महिसा व नैतिकता की पुट हो जनबंध प्राचार्यश्री तुलसी द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत प्रान्दोलन इस दिशा में एक अभिनव प्रयाम कर रहा है। वह दिग्भ्रान्त मानव समाज को नैतिकता की खुराक दे रहा है और उसे एक दिशा दर्शन देता है । अणुव्रतघान्दोलन वास्तव में एक ऐसे समाज की रचना करना चाहता है जिसमें मिलावट, चोरबाजारी, दुराचार, अनाचार, बेईमानी, ठगी, धूर्तता और स्वार्थान्धता श्रादि का पूर्ण रूप से अन्त हो जाये तथा मानव शीलवान्, सच्चरित्र व सद्गुणसम्पन्न हो ।
एक रचनात्मक अनुष्ठान
प्राचार्यश्री तुलसी ने समस्त मानव समाज को मंत्री, प्रेम और सद्भावना का सन्देश ऐसे समय में दिया है जबकि उसे उसकी परम आवश्यकता थी। भारतवर्ष के गाँव-गाँव में पैदल घूम-घूम कर प्राचार्यश्री ने जनता को यह बताया कि उनके विचारों की यह त्रिवेणी किस प्रकार मानव-समाज का कल्याण कर सकती है। महात्मा गांधी ने जिस समय अगा के बल पर स्वराज्य दिलाने का वचन दिया था, तब अधिकांश लोगों ने यह सोचा था कि क्या गांधीजी अपने सम्पूर्ण जीवन में भी यह कर दिखाने में सफल होंगे। उन्होंने आलोचकों की परवाह न करते हुए अपना प्रयास जारी रखा और अन्त में परतन्त्रता की सदियों पुरानी बेड़ियाँ तोड़ फेंकी। जिस प्रकार स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए अहिंसा व सत्य का आश्रय लिया गया, उसी प्रकार उसकी रक्षा के लिए भी महिसा और सत्य का ही प्रश्रय लेना होगा। इन गुणों को विकसित करने की आवश्यकता है। प्रणुव्रत मान्दोलन इस दिशा में एक स्पृहणीय प्रयास है। यह हमारे सौभाग्य और उज्ज्वल