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धर्म-संस्थापन का दैवी प्रयास
श्री एल० प्रो० जोशी मुख्य सचिव, दिल्ली प्रशासन
मनुष्य और शेष सृष्टि में एक मुख्य अन्तर यह है कि मनुष्य में मनन व विचार की शक्ति अधिक प्रखर एवं प्रबल होती है। मन्' (=मोचना, विचार करना) धातु से ही 'मनुष्य' शब्द की भी व्युत्पत्ति मानी जाती है, अत: मनन मनुष्य की न केवल स्वाभाविक प्रवृत्ति ही है, बल्कि उसका वैशिष्ट्य भी है। यही प्रवृत्ति नर को नारायण बनाने की आशा भी उपजाती है और वानर बनाने की प्राशंका भी। इसीलिए कहा गया है, मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः मन ही मनुष्यों के बन्धन का कारण है और मोक्ष का भी।
यह मन, यह बुद्धि, मनुष्य को सामान्यत: निविकार शान्त नहीं रहने देता। 'सामान्यतः' इसलिए कि इस पर स्वामित्व प्राप्त कर लेने वाले मनीषियों पर तो इमका वदा नहीं चलता; किन्तु शेष सब तो इसी के नचाये नाचते रहते हैं। एक दष्टि से इस प्रवृत्ति का, और इससे उत्पन्न जिज्ञासा का, बड़ा महत्त्व है । अंग्रेजी कवि एवं दार्शनिक पाउनिंग' लिखता है कि मनुष्य एक मिट्टी का ढेला तो नहीं है, जिसमे शंका व जिज्ञासा को एक चिनगारी भी न चमकती हो। और जो समझ कि जीवन केवल इसीलिए है कि खामो-पीओ और मौज करो-अथवा जैसे कि टाल्स्टाय ने अपनी मुक्ति की कहानी' (Confessions and What I believe) में सविस्तर व्याख्या की है-प्रत्येक विचारशील व्यक्ति के मन में एक प्रश्न उठता है, टाल्स्टाय के लिए भी यह प्रश्न था-"इस ससीम जीवन का कोई निःमीम प्रयोजन अथवा अर्थ है या नहीं?"
और यह प्रश्न उसे इस तरह झकझोर देता है, अभिभून कर लेता है कि जब तक उसका समाधान न हो न कोर्ट शान्ति मिलती है, न विश्राम।
में कौन हूँ? किस लिए यह जन्म पाया? क्या-क्या विचार मन में फिसने पठाया? माया किसे ? मन किसे ? किप्तको शरीर?
प्रात्मा किसे कहे सब धर्म धीर ? ये प्रश्न अनादिकाल से मनुष्य के मस्तिष्क मे उठते चले आये हैं और महापुरुषों ने भिन्न-भिन्न देश, काल एवं परिस्थितियों में अत्यन्त उत्कट साधना, अनन्य निष्ठा एवं प्रखर प्रतिभा के द्वारा इनका उत्तर खोजा है। इस खोज में उन्हे जिस सत्य के दर्शन हुए, उसे उन्होंने प्राणी-मात्र के हित के लिए अभिव्यक्त तथा प्रसारित भी किया है। कालान्तर में इन्हीं उत्तरों का वर्गीकरण हो गया और वे देश, काल अथवा व्यक्ति-विशेष से सम्बद्ध होकर किसी विशिष्ट धर्म के नाम से सम्बोधित किये जाने लग गये। मानव समाज की अपूर्व निधि
इस सन्दर्भ में एक विलक्षण तथ्य की ओर ध्यान सहसा प्राकृष्ट होता है। जिस प्रकार अध्यात्म अथवा दर्शन के क्षेत्र में इस प्रकार के अनुभव एवं प्रयोग मानव-इतिहास के प्रारम्भ से चले पा रहे हैं, उसी प्रकार भौतिक विज्ञान के क्षेत्र
Finished and finite clods, untroubled by spark.