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प्राचार्यची तुलसी अभिनन्दन सम्म ने देश के सामने रखा और इसी के आधार पर देश को स्वतन्त्र किया। उनके निर्वाण के बाद जब भारतवर्ष सर्वसत्तासम्पन्न गणराज्य बना और देश में विकास की योजनाएं बनायी गई, तब लाभकारी कार्यों की कमी न रह गई और विभिन्न वर्गों की उन्नति के नये रास्ते खुल गये। देश को विकास की ओर ले जाना था, उसकी आर्थिक उन्नति करना था, जिससे सम्पूर्ण जनता का उत्थान हो और उसकी मार्थिक दशा सुधरे। इस योजना के लिए आवश्यक था कि सच्चरित्र, परहितरत, कर्तव्य-परायण, सदाचारी नेता, हाकिम, व्यापारी, शिक्षक, कारीगर प्रादि देश के विकास की बागडोर अपने हाथ में लें। यदि इन वर्गों में सदाचार की कमी हुई तो देश का हित न होकर अहित हो जाये और देश उन्नति की पोर अग्रसर नहीं हो सकता। दुर्भाग्यवश जिस समय यह सुअवसर पाया और पाशा हुई कि अब इतने वर्षों के कठोर परिश्रम और त्याग के फलस्वरूप देश की उन्नति होगी और गरीबी मिटेगी, उस समय देखा गया कि कर्मचारियों, नेताओं, व्यापारियों आदि में अनाचार और स्वार्थ की वृद्धि हो रही है। क्योंकि अब इनके लिए नित्य नये अवसर माने लगे। अगर यही क्रम बना रहा तो नई योजनाओं का कोई लाभ न होगा और उनकी सफलता संदिग्ध बन जायेगी। देश में चारों ओर यही आवाज उठने लगी कि शासन को इस प्रकार के मगरमच्छों से बचाया जाये और भ्रष्टाचार (Corruption) को दूर किया जाये।
ऐसे समय में प्राचार्य तुलसी ने अपने अणुव्रत-अान्दोलन को प्रबल किया और अनेक वर्गों के सदस्यों को पुन: सदाचार की ओर प्रेरित किया। प्राचार्य तुलसी ने यह काम पहले ही शुरू कर दिया था, पर इसकी प्रधानता और गतिशीलता स्वतंत्रता के बाद, विशेष रूप से बढ़ी। इनका यह आन्दोलन अपने ढंग का निराला है। धर्म के सहारे व्यक्ति को ये प्रती बनाते हैं और उसको इस प्रकार बल देकर कुमार्ग और कुरीतियों से अलग करके सदाचार की ओर अग्रसर करते हैं । यह व्रत छोटे-छोटे होते हैं, पर इनका प्रभाव बहुत ही गम्भीर होता है, जो व्यक्ति तथा समाज के जीवन में कान्ति ला देता है। व्यापारियों, सरकारी कर्मचारियों, विद्यार्थियों आदि में यह आन्दोलन चल चुका है और इसके प्रभाव में सहस्रों व्यक्ति आ चुके हैं। आज इसकी महत्ता स्पष्ट न जान पड़े, पर कल के समाज में इसका असर पूरी तरह दिखाई पड़ेगा, जब समाज पुनः सदाचार और धर्म द्वारा अनुप्लावित होगा और भविष्य में प्राज की बुराइयों का अस्तित्व न होगा। प्राचार्य तुलसी और उनके शिष्य मुनिगण का कार्य भविष्य के लिए है और नये समाज के संगठन के लिए सहायक है। इसकी सफलता देश के कल्याण के लिए है। प्राशा है, यह सफल होगा और प्राचार्य तुलसी सुधारकों की उस परम्परा में, जो इस देश के इतिहास में बराबर उन्नति लाते रहे हैं, अपना मुख्य स्थान बना जायगे। उनके उपदेश और नेतत्व से समाज गौरवशील बनेगा।