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अध्याय 1
नैतिक पुनरुत्थान के नये सम्देशवाहक
सम्बन्धित सरकारों को प्रभावित नहीं कर पा रहा है। इस संकट में प्राचार्यश्री तुलसी का प्रणुव्रत पान्दोलन एक नई सामाजिक प्रार्थिक,राजनीतिक और नैतिक क्रान्ति का सन्देश देकर हमको मार्ग दिखा रहा है। यह न तो दया का कार्यक्रम है और न ही दान-पुण्य का । यह तो प्रात्म-शुद्धि का कार्यक्रम है । इसमें केवल व्यक्ति की ही पात्म-रक्षा नहीं है, प्रत्युत संसार के सभी राष्ट्रों की रक्षा निहित है। जबकि विनाश का खतरा हमारे सम्मुख है, अणुव्रत-पान्दोलन हमें ऐसी राह दिखा रहा है, जिस पर चल कर मानव जाति त्राण पा सकती है।
स्वीकृत कर वर ! चिर अभिनन्दन
श्री मोमप्रकाश द्रोण
अमल अकुल नव ज्योति विभाकर सार्वभौम हित द्योति दिपाकर जन-जन के मन के दूषित वर बन्धन सकल प्रबन्धनमय कर।
अणुव्रत, सत्य, अहिंसात्मक बल पा कर हो जन-जन-मन अविचल पंकिल जल रत ज्यों नव उत्पल किंजलकोरत, त्यों जग-हृत्थल ।
प्रसरित धवल-कमल-वर-चन्दन पुलकित चपल भ्रमर दल जन-मन गुजित अमल समल जग-कानन 'चरैवेति' रत वर जन-जीवन
अरुण राग लांछित मम वन्दन स्वीकृत कर वर ! चिर अभिनन्दन
JAIN