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अनुयायी हैं सहर्ष उद्धृत किया है और इसका अनुवाद यूरोपकी चारसे अधिक भाषाओमें हो चुका है ।*
(ख) नालदियार नामक ग्रंथका संबंध कई जैन मुनियोसे है और यह कहा जाता है कि इसको पद्मनार नामक जैनने उन्हीं मुनियोंके ग्रथोंसे सग्रह किया था। इस काव्य-सग्रहमें ४०० चौपाइयाँ है और इसमें उन्हीं विषयोंकी व्याख्या है जिनकी कि तिरुक्कुलमें है। यह ईस्वी सन्की आठवीं शताब्दिके अंतिम अर्धभागमें रचा गया था जैसा कि मडूराके " सडोमिल" ( वौल्यूम नं. ४,५ और ६)में इस लेख लेखकके दिये हुए एक लेखके अवलोकनसे मालूम होगा। इस प्रथमें कई छद हैं जो भर्तहरि और अन्य संस्कृत लेखकोंके श्लोकोंके, आधारपर लिखे गये हैं।
* इस मतकी पुष्टिमें डाक्टर जी ए. ग्रियर्सन लिखते हैं कि " इस (तिरु याटुवानयर कृत कुरलमें......२६६. छोटे छंद हैं । इसमें सदाचार, धन और सुखके तीन विषय हैं। यह तामिल साहित्यका सर्वमान्य महाकाव्य है । शैव, वैष्णव अथवा जैन प्रत्येक सप्रदायवाले इसके कर्ताको अपनी ही संप्रदायका यदलाते है, परन्तु विशप कौल्डवैलका विचार है कि इस ग्रंथका ढंग औरॉकी अपेक्षा जैन है । इसके कत्तीकी विख्यात भगिनी जिसका नाम अवियार "प्रति छित माता" था सबसे अधिक प्रशसनीय तामिल कवियों में से है। (देखो इ. म्पीरियल गजेटियर, वोल्यूम २, पृष्ठ ४३४)।-अनुवादक
+डा. प्रियर्सन इस सबंध लिखते हैं कि मुख्य तामिल साहित्य जैनियोंके ही परिश्रमका फल है । जिन्होंने ८ या ९ से लेकर १३ वी शताब्दि तक इस भापामें ग्रंथ रचनेका उद्योग किया। सबसे प्राचीन महत्त्वका प्रथ 'नालदियार' समझा जाता है और कहा जाता है कि इसमें पहिले ८००० छदथे जिनको एक एक करके उतने ही जैनियोंने लिखा था। एक राजाने इसके लेखकोंसे पिरोष किया और इन उदोको नदी में फेंक दिया। इनमेसे केवल ४०० ईद पानीके ऊपर तेरे और शेष लोप हो गए। भाजकल 'नालदियार' में ये ही ४०० छद हैं। प्रत्यक छंद सदाचारकी एक एक पृथक् सूफि है और शेपसे कोई संबंध नहीं रखता। इस संग्रहकी बहुत प्रतिमा है और यह भय भी तामिल भाषाफी प्रत्येक पाठशालामें पढाया जाता है। (इ. ग० पी० २, पृष्ट ४३४)