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विविध समाचार। कुमारोंकी संख्या--पृथ्वीके सब देशोकी अपेक्षा भारतवर्षमें अविवाहितोंकी सख्या बहुत ही कम है। यहाँ कोई अविवाहित रहना ही नहीं चाहता अथवा और देशोंकी अपेक्षा यहाँ विवाह करना एक बहुत ही मामूली बात है। सारे बगालमें जिसकी जन संख्या ५ करोड़ है केवल ६७८७ मनुष्य कौमार्य जीवन भोगनेवाले है। इग्ले. ण्डमें जब हजार पुरुषोंमें ३५७ पुरुष और हजार स्त्रियोंमें ३४० स्त्रियाँ विवाहित जीवन भोगनेवाली हैं तब बंगालमें यथाक्रम ४४५,
और ४६३, मद्रासमें ४२७ और ४३९, पजाबमे ३८८ और ४८० मध्यम प्रदशमें ५१९ और ५२९, बम्बईमे ४७४ और १११ पुरुष स्त्रियाँ वैवाहिक सुख भोगनेवाली है। यहाँ तो साल साल दो दो सालके ही बालक बालिकायें विवाहसूत्रमें बंध जाते है। फिर अविवाहितोंकी सख्या अधिक क्यो होगी ? जो कुछ है वह उन जातियोंकी कृपासे है जिनमें लड़कियोका मूल्य कई हजार तक बढ़ गया है।
पतित जातियोका उद्धार-भारतवर्षमें कुछ जातियाँ ऐसी है जो अस्पर्य समझी जाती हैं और उनके स्पर्शसे उच्च जातियोंका धर्म चला जाता है। ऐसे लोगोकी सख्या बहुत ही ज्यादा कई करोड़ है। ये लोग अस्पय तो हैं ही, इसके सिवा इनकी विद्या शिक्षा आदिका कोई प्रबन्ध न होनेसे ये मनुष्यत्वसे भी वाचत रहते है। पशुओंसे भी ये गये बीते हैं। इनके प्रति देशवासियोंके असव्यवहारका एक वडा भारी कटुक फल यह हो रहा है कि देशमें ईसाइयोकी संख्या बड़ी ही तेजीसे बढ़ रही है। ईसाई लोग सहज ही इन अस्पृश्य लोगोंको ईसाई बनाकर ऊँचा उठा लेते हैं । यह देख सारे देशक शिक्षितोंने इन लोगोंके उद्धार करनेके लिए कमर कस ली है।