________________
२५३
यदि भारत देश ससारभरमें अपनी आध्यात्मिक और दार्शनिक उन्नतिके लिए अद्वितीय है तो इससे किसीको भी इनकार न होगा कि इसमें जैनियोंको ब्राह्मणों और बौद्धोंकी अपेक्षा कुछ कम गौरवकी प्राप्ति नहीं है।
अनुवादक
जुगलकिशोर मुख्तार। नोट- यह विद्याभूषण महाशयके व्याख्यानका पूर्व भाग है । इसके आगे उन्होंने जैनसंस्थाओं और वर्तमान जैनकार्यकर्ताओंकी प्रशंसा की है। वर बहुधा अतिशयोक्ति पूर्ण है, इस लिए उसका प्रकाशित करना हम उचित नहीं समझते ।-सम्पादक।
. ऐतिहासिक लेखोंका परिचय।
(गताइसे आगे।)
३. विषय। इन लेखोंमें अन्य भेदोके साथ विपयकी भी भिन्नता है । अधिकाश लेख दानके विषयमें हैं । दान भी धर्मसम्बन्धी और राज्य । सम्बन्धी दो प्रकारके है।
कई लेखोंमें श्रीजिनेन्द्रभगवानके मदिरोके निमित्त ग्रामोंके दानका उल्लेख है। चालुक्यवंशीय राजा अम्म द्वितीयका एक लेख यह सूचित करता है कि जिनमंदिरकी एक खैराती भोजनशालाके लिए उन्होंने एक ग्राम दान दिया था। गयामें बराबर पर्वतपर महाराज