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मनुष्य प्रतिदिन ही शास्त्रस्वाध्याय और ध्यानसे अपने हृदयको पवित्र करते हैं; परन्तु महीनेके खास दिनोमें वे परस्पर अपने पापोंकी आलोचना करनेके लिए एकत्र होते है जो उनके धर्मका एक मुख्य चिह्न है। ___ यह आदर्श पुरुपकी बात है। परन्तु एक गृहस्थका जीवन भी जो
जैनत्वको लिये हुए है इतना अधिक निर्दोप है कि हिन्दुस्तानको उसका अभिमान होना चाहिए । गृहस्थके लिए 'अहिंसा' को अपने जीवनका आदर्श (Motto) बनाना होता है। सिर्फ जीवधारियोंको उनके मासके लिए वध करनेका ही उसके त्याग नहीं होता, बल्कि उसका यह कर्तव्य है कि वह किसी छोटे जन्तुको भी किसी प्रकारका कोई नुकसान न पहुंचावे, और उसे अपना भोजन बिलकुल निरामिष सर्वप्रकारके मांसाहारसे रहित-रखना होता है । सज्जनो, मेरा यह अभिप्राय नहीं है कि मै उनके भोजन और जीवनरीतियोंके सम्बन्धमें बहुतसे उत्तमोत्तम नियमोंका विस्तारके साथ वर्णन करूँ, मैं इतना ही कहना काफी समझता हूँ कि वे खानेपीनेके सम्बन्धमें सातिशय संयमशील है और उनका भोजन बड़ी ही सूक्ष्मदृष्टिसे शुद्ध तथा असा. धारण रीतिसे सादा होता है । ये भोले भाले और किसीको हानि न पहुँचानेवाले जैनी, यद्यपि पंद्रह लाखसे अधिक नहीं है, तथापि बहुतसी बातोंमें प्रत्येक मानवजातिके एक भूषण है, चाहे वह कैसी ही सभ्य क्यों न हो। _जैनियोंके साहित्यमें एक विशेषता है। यूनानियोंको छोडकर जिन्होंने अपने धार्मिक और लौकिक साहित्यको प्रारभसे ही एक दूसरेसे अलग रक्खा है अन्य समस्त देशोंका वही आदिम साहित्य है जो कि उनका धार्मिक साहित्य है। ब्राह्मणोंके वेद, यहूदियोंकी बाइबिल