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सद्दष्टि-ज्ञान-चरित्रका सुप्रचार हो जगमें सदा । यह धर्म है, उद्देश है; इससे न विचलित हो कदा ।। 'युग-वीर' बन यदि स्वपरहितमें लीन तू हो जायगा। तो याद रख, सब दुःख संकट शीघ्र ही मिट जायगा।
समाजसेवकजुगलकिशोर मुख्तार ।
डाक्टर सतीशचन्द्रकी स्पीच । श्रीयुत मान्यवर महामहोपाध्याय डाक्टर सतीशचंद्र विद्याभूपण, एम. ए., पी. एच. डी., एफ़. आई, आर. एस., सिद्धान्तमहोदधिने, २७ दिसम्बर सन् १९१३ को स्याद्वादमहाविद्यालय काशीके महोत्सवपर जो स्पीच अँगरेजीमें दी है उसका हिन्दी भावानुवाद इस प्रकार है:__ सज्जनो, मुझे इस शुभ अवसरपर सभापतिका आसन देकर आप लोगोने जो मेरा सन्मान किया है उसका हार्दिक धन्यवाद दिये बिना मै आजकी मीटिंगकी कार्रवाईको शुरू नहीं कर सकता। औरोंकी. अपेक्षा मेरा दृढ़ विश्वास है कि आप अनुभवी विद्वानो और जीवनपर्यत जैनधर्मका अभ्यास करनेवालोंके इस दीप्तिमान समूहमेंसे मुझसे . कोई अच्छा और योग्य सभापति चुन सकते थे। परन्तु चूंकि आपने ' प्रसन्न होकर मुझे यह असाधारण मान दिया है इसलिए मुझे आपकी । आज्ञाका पालन करना चाहिए और मै एक ओर आपके अनुग्रह और
१ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रका |