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भी सार्वजनिक लाभके काममें जैनियोका हाथ नहीं दिखता। और तो क्या हमारे नैतिक, धार्मिक और समाजसुधारसम्बन्धी उपदेश आदि भी केवल जैनियों के लिए ही होते हैं। पारस्परिक सहानुभूति और सहायतावुद्धिकी तो हममें इतनी कमी है कि हम अपने घरहीमें बारहों महीने लडा करते है। हमारे श्वेताम्बरियों और दिगम्बरियोंके तीर्थक्षेत्रसम्बन्धी मुकदमे इसके ज्वलन्त उदाहरण है। गतवर्ष पाटीताणांक जलप्रलयके समय जैनियोंकी सहायता करनेके लिए कई आर्यसमाजी भाई पालीताणा दौड़े गये थे; परन्तु अभी दक्षिण आफ्रिका भाइयोपर जब विपत्ति आई और सारे देशके लोगोंने उनके प्रति सहानुभूति प्रकट की तथा विपुल धनसे सहायता की, तब बतलाइए हमारे जैनी भाइयोंने क्या किया? कितना धन दिया? हमारे दयाधर्मने क्या काम किया । जिस समय सम्मेदशिखरतीर्थपर घोर उपसर्ग उपस्थित हुआ था--उसपर सरकारी वगले वननेवाले थे उस समय हमारे कुछ भाई एक देशभक्त लीडरसे इस लिए जाकर मिले थे कि वे इस विपत्तिके समय हमें कुछ सहायता दें और आन्दोलन करके हमारे पर्वतकी रक्षा करें । उस समय उक्त देशभक्त महाशयने उत्तर दिया था कि "जैनी हमारी और हमारे देशकी क्या सहायता करते हैं जो हम उनकी सहायता करें।" यद्यपि एक देशभक्तके मुँहसे ऐसे शब्द न निकलना चाहिए थे, परन्तु इसमें उन्होंने झूठ ही क्या कहा था ? यदि जैनी बुद्धिमान् हैं तो वे इस उत्तरसे बहुत कुछ सीख सकते है और अपने भविष्यका मार्ग निश्चित कर सकते हैं। ___ यह कहा जा सकता है कि जैनसमाज अभी अभी जागृत हुआ है। अभी उसमें स्वयं अपनी ही आवश्यकताओंके पूर्ण करनेकी शक्ति उत्पन्न नहीं हुई है, इसलिए दूसरोंकी ओर ध्यान देनेका उसे अव