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किलेमें जो सासबहके उत्तम मन्दिर है वे ग्यारहवीं शताब्दीकी कारीगरीका नमूना बताये जाते हैं। पार्श्वनाथमन्दिर भी बारहवीं
शताब्दीका ही है। सासबहूका मन्दिर हिन्दुओंकी कारीगरीका नमूना _है या जैनलोगोंका, इस विषयमें अनेक मतभेद है । सासबहूके मन्दि
रको सहस्रबाहुका मन्दिर भी कहते है और इस नामपरसे यह हिन्दु- ओंकी कारीगरीका नमूना जान पड़ता है।
किलेमे जो जैनमूर्तियों है उन्हें जैनियोंने अपने पूजनीय देवताओके स्मरणार्थ बनवाया था। ये मूर्तियाँ भारतवर्षकी अन्य जैनमूर्तियोसे सर्वोत्तम समझी जाती हैं। कनिंघम साहबने इनकी उत्तमताकी बहुत प्रशसा की है । ग्वालियरके किलेमे बहुतसे मन्दिर, महलात और इमारतें होनेके कारण दर्शक लोग बहुवा समर्याभावसे इन महत्त्वपूर्ण मूर्तियोंकी ओर दुर्लक्ष्य कर जाते है। परन्तु ये मूर्तियाँ भी चित्रनिर्माणशास्त्र और जैनधर्मकी प्राचीनताकी झलकके कारण बहुत बड़े महत्त्वकी है।
ग्वालियरके किलेमें मानसिंहके महलके पास पहुंचते ही महलकी दीवारपर कई छोटी छोटी मूर्तियाँ दिखाई पड़ती है; परन्तु चे अधिक महत्त्वकी नहीं है। पश्चिमकी ओर जानेसे और भी मूर्तियाँ दिखाई पड़ती है। परन्तु उस ओरकी सड़क वन्द होनेसे दर्शक उनके दर्शनोंका लाभ नहीं उठा सकते । दक्षिण पश्चिमकी ओर जानेसे भी कुछ मूर्तियों मिलती हैं, इनकी भी गणना उत्तम मूर्तियोमे नहीं की जाती। दक्षिण पूर्वकी ओर जानेसे जो मूर्तियाँ उर्वाई दरवाजेके पास मिलती हैं उन्हें ग्वालियरका किला देखनेवाले दर्शकोको कभी नहीं भूलना चाहिए। उर्वाई दरवाजेसे किलेके ऊपर चढते ही थोड़ी दूर आगे चलकर पहाड़की कन्दरामें. पत्थरमें ही कटी हुई ये विशालकाय मूर्तियों