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प्रभाव । डाले ऐतिहासिक अन्वेषणके अर्थ रोयल एशियाटिक सोसायटीका अटूट परिश्रम और उसका फल आपको अविदित नहीं है। सौ वर्ष हुए सर्व साधारण महाराज अशोकका नाम तक न जानते थे और उनके स्तंभ जिन प्रामोमे हैं वहाके निवासी अज्ञातवश उनको 'भीमकी गदा' इत्यादि कहा करते थे। किन्तु इस सुसायटीके परिश्रमसे यह अज्ञान दूर होगया। इसी प्रकारकी सैकड़ों बातोंकी खोज इस सोसाइटीने कर डाली है। यदि हमारे जैनी भाई भी इस ओर ध्यान दे तो जैन इतिहाससंबधी बहुतसे अन्वेषण हो जाये जिससे वर्तमान ऐतिहासिक पुस्तकोमे वडा भारी परिवर्तन हो जाय और जैनधर्मकी सच्ची प्रभावना हो।
परम हर्षका विषय है कि स्वर्गीय बावू देवकुमारजीकी उदारतासे आरा (विहारप्रान्त) मे 'श्रीजैनसिद्धान्तभवन' नामकी एक उच्च श्रेणीकी संस्था खुल गई है और इसके अन्वेषण और परिश्रम, इसकी वार्षिक रिपोर्ट और इसके मुखपत्र 'श्रीजैनसिद्धान्तभास्कर' से भली भाति प्रकट है। इतने अल्प कालमें और कार्यकर्ताओंकी कमी होनेपर इस सस्थाने जितनी सामग्री एकत्रित की है और जो जो कार्य किये हैं वे बहुत ही प्रशसनीय है। किंतु क्या आप इसको पर्याप्त समझते है ? कदापि नहीं । अभी हमको बहुत परिश्रम करना है अतएव यह हमारा सर्वोपरि कर्तव्य है कि तन मन धनसे ऐतिहासिक उद्धारमे लग जावे और यथाशक्ति इस संस्थाकी सहायता करें। अपने अपने अन्वेषणोंसे, लेखोंसे, सामग्रीसे और धनसे इस संस्थाको परिपूर्ण और चिरस्थायी कर दें। थोड़ेसे स्वार्थत्यागसे बहुत कुछ हो सकता है।
जातिसेवकमोतीलाल जैन, सी. टी.,
आगरा।