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________________ २०१ किन्तु वास्तवमे ही क्या कन्याका निर्वाचन करना इतना सहज है ? हमें जानना चाहिए कि हिन्दूविवाहमे न तो छोडछुट्टी या स्तीफेका रिवाज है और न कोर्टशिप है, इसी लिए पात्रीनिर्वाचन करते समय बहुत कुछ सोच विचार करनेकी जरूरत है । पहले देखना चाहिए कन्याका चरित्र, इसके बाद उसकी बुद्धि और अन्तमे उसका रूप। अव प्रश्न यह है कि एक छोटीसी अपरिचित बालिकाके चरित्र और बुद्धिका निर्णय कैसा किया जा सकता है ? उत्तर यह है कि मनुष्यके चरित्रका और बुद्धिका निदर्शन उसके मुखकी आकृतिमें मौजूद रहता है । हमें चाहिए कि मुखकी आकृति देखकर लोगोके स्वभावका निर्णय करना सीखे। किसीके उज्ज्वल नेत्रों बुद्धिकी ज्योति दिखलाई देती है, किसीके नेत्रोंसे उसके स्नेहाल हृदयका पता लगता है, किसीकी चितवन और अधर देखते ही दुश्चरित्रताका सन्देह होता है और किसीकी उन्नत भौंहें, चौड़ा ललाट, तथा अधरोष्ठोंकी गठन देखते ही उसकी चिन्ताशीलता और दृढ प्रतिज्ञाका परिचय मिलता है। जो अपनी तीक्ष्ण बुद्धिकी सहायतासे मुख देखकर अन्तःकरणकी परीक्षा करनेमें सिद्धहस्त है, उन्हें ही कन्याको देखनेके लिए भेजना चाहिए-उन्हीसे कन्यानिवोचनका उद्देश्य सिद्ध हो सकता है। एक उपाय और भी है, वह यह कि अपने सगे सम्बन्धियो या रिश्तेदारोंसे कन्याके सम्बन्धमें पूछताछ करना । यह ज़रूर है कि इस तरहकी पूछताछ करनेसे जो बातें मालूम होती हैं उनके झूठ और सच होनेका निर्णय सावधानीसे करना पड़ेगा। क्योंकि ऐसे बहुत लोग होते हैं जो निःस्वार्थ और निरपेक्ष भावसे ऐसी बातें नहीं बत- ' लाते । परन्तु कन्याके पक्षी और विपक्षी दोनोंकी बातें मालम करके बहुत कुछ निर्णय किया जा सकता है । एक बात और है, अपरि
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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