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१४६ राज्यसेवा; राजा, मंत्री, सेनापति और सेवकका स्वरूपवर्णन व्यवसाय महिमा; देवपूजा; दानकी प्रेरणा, भोजन कब, कैसा, कहाँ और किस प्रकार करना न करना आदि; समय मालूम करनेकी विधि, भोजनमें विषकी परीक्षा; आमदनी और खर्च आदिका विचार करना; संध्यासमय निषिद्ध कर्म; दीपकशकून; रात्रिको निपिद्ध कर्म; कैसी चारपाई पर किस प्रकार सोना; वरके लक्षण, वधूके लक्षण; सामुद्रिक शास्त्रके अनुसार शरीरके अगोपाग तथा हस्तरेखादिकके द्वारा पुरुपपरीक्षा और स्त्रीपरीक्षाका विशेष वर्णन लगभग १०० श्लोकोंमें; विपकन्याका लक्षण: किस स्त्रीको किस दृष्टिसे देखना. त्याज्य स्त्रिया: स्त्रियोंके पद्मिनी, संखिनी आदि भेद; स्त्रियोंका वशीकरण; सुरतिके चिह्न ऋतुभेदसे मैथुनभेद; स्त्रियोंसे व्यवहार; प्रेम टूटनेके कारण पतिसे विरक्त त्रियोंके लक्षण, कुलस्त्रीका लक्षण और कर्त्तव्य; रजस्वलाका व्यवहार; मैथुनविधि; वीर्यवर्धक पदार्थोके सेवनकी प्रेरणा गर्भमें बालकके अंगोपाग बननेका कथन, गर्भस्थित बालकके स्त्रीपुरुष नपुंसक होनेकी पहचान; जन्ममुहूर्त्तविचार, वालकके दॉत निकलनेपर शुभाशुभविचार, निद्राविचार; ऋतुचर्या; वार्पिक श्राद्ध करनेकी प्रेरणा; देश और राज्यका विचार; उत्पातादि निमित्त विचार, वस्तुकी तेजी मदी जाननेका विचार; ग्रहोंका योग, गति और फल विचार; गृहनिर्माणविचार; गृहसामग्री और वृक्षादिकका विचार; विद्यारभके लिए नक्षत्रादि विचार; गुरुशिष्यलक्षण और उनका व्यवहार; कौन कौन विद्यायें और कलायें सीखनी; विषलक्षण तथा सादिकके छूनेका निषेध; सादिक दुष्ट मनुष्यके विष दूर होने न होने
आदिका विचार और चिकित्सा (८५ श्लोकोंमें); षट्दर्शनोंका वर्णन; सविवेक वचनविचार; किस किस वस्तुको देखना और किसको