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श्रीमान् सेठ हुकमचन्दजीने शिक्षाप्रचारके लिए चार लाख रुपयेकी एक मुश्त रकम देनेका वचन दिया और महत्त्वका कार्य नहीं हुआ। स्वागतकारिणी समितिके सभापतिका और सभापतिका व्याख्यान हुआ, मामूली प्रस्ताव पेश हुए और पास किये गये, इस तरह सभाका जल्सा समाप्त हो गया । सभाएँ और उनके अधिवेशन करते हुए हमे बहुत दिन हो गये । इनसे हमारा इतना अधिक परिचय हो गया है कि अब इनमें हमें पहले जैसा आनन्द नहीं आता; अब ये काम भी एक प्रकारकी रूढ़ियेका रूप धारण करते जाते है और हमारे उत्साह आनन्द आदिमें कुछ विशेष उत्तेजना नहीं ला सकते है। इसलिए हमें अब अपने मार्गको कुछ बदलना चाहिए और अपनी प्रत्येक सभाके जल्सेको ऐसा रूप देना चाहिए जिससे वह हमारे हृदयमें कुछ नवीन उत्साह और आनन्दकी वृद्धि करे, किसी खास कार्य करनेके लिए हममें उत्तेजना उत्पन्न करे, हमारे नवयुवकोंको नये नये कर्तव्यके पथ सुझावे और आगे अपनी अपनी जिम्मेदारियोंको अधिकाधिक समझने लगें। यदि हम ऐसा न कर सकें तो कहना होगा कि समाजके सिरपर विवाह शादियों या मेला उत्सवोंके समान यह • एक और नया ख़र्च मढ़ दिया है।
१२ एक वालिकाकी अतिशय शोकजनक मृत्यु। जिस तरह इस ओर कन्याविक्रयका जोरोशोर है उसी प्रकार बंगालमें कन्याके पितासे मनमाना रुपया लेकर पुत्रकी सगाई करनेका अत्यधिक प्रचार है, “यह धन जो कन्याके पितासे लिया जाता है यौतुक कहलाता है, बिना हजारों रुपया यौतुक दिये कोई पिता अपनी कन्या अच्छे वरके साथ सम्बन्ध नहीं विवाह पाता। इससे जिन साधारण स्थितिके गृहस्थोके एक साथ दो कन्याएँ विवाहने योग्य हो गई उनके दःखका कुछ पारावार नहीं रहता। फाल्गुणके प्रवासीसे मालूम हुआ