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स्थानकी कमीसे हम उत्सवका पूरा विवरण न देकर केवल उतने ही शब्द यहॉ प्रकाशित करेंगे जो श्रीसेठीजीने उस समय कहे थे-"सज्जनवृन्द, आज आप लोगोंने बड़ी भारी कृपा करके मेरे इस गरीब घरको पवित्र किया। इसका मैं बहुत ही आभारी हूँ। आज प्रकाशचन्द्रका जन्म दिन है। यह जब पैदा हुआ था तब इसने इस घरमें आनन्दके वाजे बजवाये थे और आज यह नौवें वर्षका उलंघन कर दशवेंमें पदारोपण करता है, इसलिए आज भी आनन्दोत्सव मनाया जा रहा है। किन्तु मेरी समझमें उस खुशीमे और इस खुशीमे बहुत अन्तर है। इसका वर्णन करनेके लिए बहुत समय चाहिए इसलिए मै उसका जिक न करके अपने उद्देश्यकी ओर झुकता हूँ। बान्धवो, मैं अपने लख्ते जिगर प्रकाशचन्द्रसे आम लोगोंकी तरह यह आशा नहीं रखता कि यह मुझे धन कमा कर दे। मैं नहीं चाहता कि प्रकाशचन्द्र बड़े बडे महल मकानात चुनावे और बुढ़ापेमें मेरी सेवा करे । मै नहीं चाहता कि यह वी. ए, एम. ए, पासकर तहसीलदारी या नाजिमी कर गुलाम बने । मैं सौ दो सौ रुपये मासिक वेतनमें इसका जीवन नहीं बिकवाना चाहता। मैं चाहता हूँ कि जिस भूमिपर जन्म लेकर इसने आपको इतना बड़ा किया है, जिसके अन्न जल वायुसे पालित पोषित होकर यह अपनी प्राणरक्षा कर सका है, जिसके सन कपासादिके कपडोंसे अपने शरीरको बचा सका है उसी जन्म भूमिकी भलाईके लिए उसकी वहवूदीके लिए और उसकी उन्नतिके लिए यह अपना सर्वस्व अर्पण कर दे। बेटा प्रकाश, आजसे मैंने तुमको उस स्वर्णमयी धराका, उस भीमार्जुन जैसे वीरोंको जन्म देनेवाली वसुन्धराका, कर्ण सदृश दानियोंकी जन्मदातृ भूमिका, समन्तभद्राचार्य, शकराचार्य, हेमचन्द्राचार्य, अकलङ्क भट्टादि तत्त्ववेत्ताओंकी धारक धरणीका, गौत