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११८ जिससे जितनी हो सके इन संस्थाओंकी सेवाके लिए कटिबद्ध हो जाओ.-और लोगोंको दिखला दो कि शिक्षा प्राप्त करनेका फल केवल धन कमाना नहीं, किन्तु देश और समाजकी सेवा करना है।
५. पदवियोंका लोभ. देखते हैं कि आजकल जैन समाजमें पदवियोंका लोभ वे तरह . बढ़ता जाता है। एक तो सरकारकी औरसे ही प्रतिवर्ष चार छह जैनी रायसाहब, रायबहादुर आदिकी वीररसपूर्ण पदवियोंसे विभूषित हो जाते हैं और फिर जैनियोंकी खास टकसालमें भी दश पाँच सिंगई, सवाई सिंगई, श्रीमन्त आदि प्रतिवर्ष गढ़े जाते हैं। उधर सरकारी यूनीवर्सिटियोंकी भी कम कृपा नहीं है। उनके द्वारा भी बहुतसे बी. ए., एम. ए., शास्त्री, आचार्य आदि बना करते हैं। परन्तु मालम होता है कि लोगोंको इतनेपर भी सन्तोष नहीं। उनके आत्माभिमानकी पुष्टि इतनेसे नहीं हो सकती। पदवी पानेके ये द्वार उन्हें बहुत ही संकीर्ण मालूम होते हैं। इनसे तंग आकर अव उन्होंने सभा समितियोंका आश्रय लिया है। चूंकि पदवीदान सरीखा सहज काम और कोई नहीं इस लिए सभाओंने बड़ी खुशीसे यह काम स्वीकार कर लिया है। अभी कुछ समयसे प्रांतिक सभा महासभा आदि एक दो सभाओंने इस कामको अपने हाथमें लिया था और दो चार व्यक्तियोंको अपने कृपा कटाक्षसे ऊँचा उठाया था। परन्तु इनका यह कार्य बड़ी ही मन्दगतिसे चल रहा था। यह देख भारत जैन महामण्डलसे न रहा गया उसने अबके बनारसके अधिवेशनपर सारी संकीर्णताको अलग कर दिया और एक दो नहीं दर्जनों पदवियाँ अपने कृपापात्रोंको दे डालीं। इस विषयमें उसने इतनी उदारता दिखलाई जितनी शायद ही कोई दिखा सकता। सुनते तो यहाँ तक हैं कि मण्डलके बहुतसे मेम्ब