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देखनेमें ही जिन्हें सुख मालूम होता है, अपने स्वभावके अनुसार चलनेमें जिन्हें लज्जा, सकोच, अभिमान आदि कुछ भी नहीं होता, वे जान बूझकर बिगाड़े जाते है, चिरकालके लिए अकर्मण्य बना दिये जाते है, यह बड़े ही दुःखका विषय है। भगवान् , ऐसे पितामाताओंके हाथसे इन निरपराध बच्चोंकी रक्षा करो, इनपर दया करो।
हम जानते है कि बहुतसे घरोंमें बालक बालिका साहब बनाये जा रहे है। वे आयाओं या दाइयोंके हाथोंसे मनुष्य बनते हैं, विकृत वेढंगी हिन्दुस्थानी सीखते हैं, अपनी मातृभाषा हिन्दी भूल जाते है और भारतवासियोंके बच्चोंके लिए अपने समाजसे जिन सैंकड़ों हजारों भावोंके द्वारा निरन्तर ही विचित्र रसोंका आकर्षण करके पुष्ट होना स्वाभाविक था, उन सब स्वजातीय नाडियों के सम्बन्धसे वे जुदा हो जाते हैं और इधर अँगरेजी समाजके साथ भी उनका सम्बन्ध नहीं रहता । अर्थात् वे अरण्यसे उखाड़े जा कर विलायती टीनके टोंमे बड़े होते है। हमने अपने कानोसे सुना है इस श्रेणीका एक लडका दरसे अपने कई देशीय भावापन्न रिश्तेदारोंको देखकर अपनी मासे बोला था-"Mamma, mamma, look, lot of Babus are coming" एक भारतवासी लडकेकी इससे अधिक दुर्गति और क्या हो सकती है ? बड़े होनेपर स्वाधीन रुचि और प्रवृत्तिके वश जो साहबी चाल चलना चाहें वे भले ही चलें, किन्तु उनके बचपनमे जो सव मावाप बहुत अपव्यय और बहुतसी अपचेष्टासे सन्तानोको सारे समाजसे बाहर करके स्वदेशके लिये अयोग्य और विदेशके लिए अग्राह्य बना डालते है, सन्तानोंको कुछ समयके लिए केवल अपने उपार्जनके बिलकुल अनिश्चित आश्रयके भीतर लपेट रखकर भविष्यतकी दुर्गतिके लिए जान बुझकर तैयार करते हैं, उन सब अमि