________________
%AM
जल फल आदिमिलाय गाय गुन, भगतभाव उमगाय । जजों तुमहिं शिवतियवर जिनवर, आवागमन मिटायापून ॐ ह्रीं श्रीपमप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अधं नि पामि ॥
पञ्चकल्याणक।
छंद द्रुतविलेवित तथा सुन्दरि (मात्रा १६)। al असित माग सु छट बखानिये । गरभमंगल तादिन मानिये ॥
उरधग्रीवकसौं चय राजजी। जजत इंद्र ज हम आजजी ॥१॥ ___ॐ हीं माघकृष्णपष्ठीदिने गर्भावतरणमङ्गलप्राप्ताय श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ ॥१॥ R: सुकलकातिकतेरसकों जये। त्रिजगजीव सु आनंदकों लये॥
नगर स्वर्गसमान कुसंबिका । जजतु हैं हरिसंजुत अंबिका ॥२॥ उन्हीं कार्तिकशुरुत्रयोदश्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीपमप्रभजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्याहा॥२॥ सुकलतेरसकातिक भावनी । तप धरयो वनषष्टम पावनी ॥