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चारशतक धनु अवगाहना। जजों तासपद थुतिकर धना ॥५॥ __ॐ हीं चैत्र शुक्लषष्ठीदिने निर्वाणकल्याणप्राप्ताय श्रीशंभवजिनेन्द्राय अर्ध० ॥ ५॥
जयमाला। दोहा-श्रीशंभवके गुन अगम, कहि न सकत सुरराज। मैं वशभक्ति सुधीठ है, विनवों निजहितकाज ॥१॥
छंद मोतीदाम। जिनेश महेश गुणेश गरिष्ट । सुरासुरसेवित इष्ट वरिष्ट ॥ धरे वृषचक्र करे अघ। चूर। अतत्वछपातममई नसूरः ॥२॥ सुतत्त्वप्रकाशन शासन शुद्ध । विवेक विराग बढ़ावन बुद्ध ॥ यातरुतर्पनमेघ महान। कुनैगिरिगंजन वन समान ॥३॥ सुगर्भर जन्ममहोत्सवमाहि। जगजन आनंदकंद लहाहि ॥ सुपूरव साठहि लच्छ जु आय । कुमार चतुर्थम अंश रमाय ॥४॥ चवालिस लाख सुपूरव एव । निकंटक राज कियो जिनदेव ॥ तजे कछुकारन पाय सुराज। धरे व्रत संजम आतमकाज ॥५॥ सुरेन्द्र नरेन्द्र दियो पयदान । धरे बनमें निज आतम ध्यान ॥ कियौ चवघातिय कर्म विनाश। लयो तब