________________
२
ietstatstieteetetetoetste tietots tretetetetretettettsetsetestetstedetsetetut
सिंहासन छत्र चमर सुहात। भामडलछवि वरनी न जात॥ तरु उच्च अशोक र सुमनवृष्टि धुनि दिव्य और दुन्दुभी मिष्ट ॥ ६॥ इंग ज्ञान शर्म बीरज अनंत । गुण छियालीस इम तुम लहंत ॥ इन आदि अनंते सुगुन धार। वरनत गनपति नहिं लहत पार ॥ १०॥ तव समवशरनमहँ इंद्र आय। पद पूजत बसुविधि दरव लाय ॥ अति भगतिसहित नाटक रचाय ॥
ताथेइ थेइ थैइ पुनि रही छाय ॥ ११॥ पग नूपुर झननन झनननाय । तननननन तननन स तान गाय ॥ घननन नन नन घंटा घनाय । छम छम छम छम घुघरू बजाय ॥१२॥ द्वम
दूम दम दम दम मुरज ध्वान । संसानदि सरंगी सुर भरत तान ॥ झट झट झट अटपट नटत नाटः । इत्यादि रच्यो अद्भुत सुठाट ॥ १३ ।। पुनि बंदि इंद थुति नुति करंत । तुम हो जगमें जयवंत संत ॥ फिर तुम विहार करि धर्मवृष्टि। सव जोग निरोध्यो परम इष्ट ॥१४॥ सन्मेदथकी लिय मुकति थान । जय सिद्धशिरोमन गुननिधान ॥ वृन्दावन बंदत वारवार । भवसागरते मो तार तार ॥१५॥
- छंद घत्तानंद। जय अजित कृपाला गुनमणिमाला, संजमशाला बोधपती। वर सुजसउजाला हीरहिमाला, ते अधिकाला स्वच्छ अती॥ १६॥
ॐ हीं श्रीअजितजिनद्राय पूर्णाघ निर्वपामीति स्वाहा ॥