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पू.
___ॐ हीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय क्षुद्रोगनिवारणाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥ शुधि घृताश्रित दीपक जोइया। असममोह महातम खोइया। जजतु हौं नमिके गुनगायके । जुगपदबुांज प्रीति लगायकें ॥६॥ ___ॐ ली श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारबिनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ A अमरजिल्लविपं दशगंधको। दहत दाहत कर्म कबँधको ॥
जजतु हौं नमिके गुनगायकें । जुगपदाम्बुज प्रीति लगायकें ॥७॥ ___ॐ ही श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ फलसुपर मनोहर पावने । सकल विनसमूह नशावने ॥ जजतु हों नमिके गुनगायके । जुगपदांबुज प्रीतिलगायकें ॥८॥ ___ॐ ही श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ जलफलादि मिलाय मनोहरं । अरघ धारत ही भय भी हरं ॥ जजतु हौं नमिके गुनगायकें । जुगपदांबुज प्रीति लगायके ॥ ६ ॥