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____७० हा श्रानामनाजिनेन्द्राय जन्ममृत्युविनाशनाय जलंनिवपामीति स्वाहा ॥ हरिमलै मिलि केशरसों घसों। जगतनाथ भवातपको नसों॥ जजतु हौं नमिके गुनगायकें । जुपगदांबुज प्रीति लगायकें ॥२॥ ___ ॐ हीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ॥ गुलकके सम सुंदर तंदुलं । धरत पुंजसु भुंजत संकुलं । जजतु हौं नसिके गुनगायके। जुगपांदबुज प्रीति लगायकै ॥ ३॥
ॐ हीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदसम्प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ॥ कमल केतुकी बेलि सुहावनी। समरसूल समस्त नशावनी ॥ जजतु हौं नमिके गुनगायकें । जुगपदांबुज प्रीति लगायक ॥४॥
ॐ ह्रीं श्रीनमिनार्थाजनेन्द्राय कामवाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥ शशि सुधासम मोदक मोदनं । प्रबल दुष्ट छुधामद खोदनं ॥ | जजतु हौं नमिके गुनगायकें । जुगपदाबुज प्रीति लगायके ॥५॥
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