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ग.
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शिवपदराज हेत हे श्रीधर शरन गही में आई ॥ रोग० ॥६॥ ॐ हीं नीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अनर्थ्यपदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥
पंचकल्याणक ।
लक्षमीधरो छन्द (१२ वर्ण)। चैतकी शुद्ध एक भली राजई । गर्भकल्यान कल्यानकौं साजई ॥ कुंभराजा प्रजापति माता तने। देवदेवी जजे शीस नाये घने। ॐ हीं चैत्रशुक्लप्रतिपदा गर्भागममङ्गलमण्डिताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अर्ध नि० मार्गशीर्ष सुदी ग्यारसी रोजई। जन्मकल्यानको द्यौस सो छाजई॥ इंद्र नागेंद्र पूजें गिरेंद्र जिन्हें । मैं जजौं ध्यायके शीसनावौं तिन्हें॥ ____ॐ हीं मार्गशीर्षशुक्ल कादश्यां जन्ममङ्गलप्राप्ताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अर्घ नि० मार्गशीर्षेसुदीग्यारसीके दिना । राजको त्याजदीच्छा धरी है जिना॥ दान गोचीरको नंदसेनें दयौ । मैं जजौं जासुके पंचचर्जे भयो।