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राग-दोष-मद-मोहहरनको, तुम ही हौ वरवीरा । याते शरन गही जगपतिजी, बेग हरो भवपीरा ॥ १॥ * हीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपानीति स्वाहा ॥१॥ पावनचंदन कदलीनंदन, कुंकुमसंग घसायौ ॥ लेकर पूजौं चरनकमल प्रभु, भवआताप नसायो ॥ राग० ॥२॥ ॐ हीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चंदनं निवपामीति० ॥ २॥ . तंदुलशशिसम उज्जल लीने, दीने पुंज सुहाई। नाचत राचात भगति करत ही, तुरित अखैपद पाई ॥ राग० ॥३॥ ॐ ह्रीं श्रीमलिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति० ॥३॥ पारिजातमंदार सुमन, संतानजनित महकोई। मार सुभट मदभंजनकारन, जजहुं तुम्हें शिरनाई ॥ राग०॥४॥ ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति०॥४॥
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