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श्रीमल्लिनाथजिनपूजा।
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अपराजितते आय नाथ मिथिलापुर जाये । कुंभरायके नन्द, प्रजापति मात बताये। कनक वरन तन तुंग, धनुष पच्चीस विराजै। सो प्रभु तिष्ठहु आय निकट मम ज्यों भ्रमभा। ॐ ह्रीं श्रीमलिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर । संवोषट् । ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ठः । ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव । वषट् ।
अष्टक।
छंद जोगीरासा (मात्रा २८) . सुर-सरिता-जल उज्जल लौ कर, मनिभृगार भराई। जनम जराभृत नाशनकारन, जजहुं चरन जिनराई ।।