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ॐ हीं कार्तिककृष्णप्रतिपदिगर्भमंगलमण्डिताय श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्घ नि० ॥१॥ जनम जेठवदी तिथि द्वादशी । सकलमंगल लोकविर्षे लशी। al हरि जजे गिरिराज समाजते। हम जजें इत आतमकाजतैं ॥२॥ ___ॐ ही ज्येष्ठकृष्णद्वादश्यां जन्ममंगलप्राप्ताये श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्घ नि० ॥२॥ भवशरीर विनखर भाइयो असित जेठदुवादशि गाइयो। सकल इंद्र जजे तित आइकैं। हम जजै इत मंगल गाइकैं॥३॥ ___ ॐ ही ज्येष्ठकृष्णद्वादश्यां निःक्रमणमहोत्सवमण्डिताय श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्घ ॥ असित चैत अमावसको सही। परम केवल ज्ञान जग्यो कही। लहि समोसृत धर्म धुरंधरो। हम समर्चत विघ्न सबै हरो॥४॥ ___ॐ हीं नेत्ररुष्णामावस्यायां केवलज्ञानप्राप्तये श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्ध नि०॥४॥
असित चेततुरी तिथिगाइयौ । अघतघाति हने शिवपाइयो। गिरिसमेद जजे हरि आयकैं। हम जजै पद प्रीति लगायकैं॥५॥
ॐ ही चैत्रकृष्णचतुर्थ्या मोक्षमंगलप्राप्तये श्रीअनन्तताथजिनेन्द्राय अर्थ नि० ॥५॥