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श्रावश्यक दिग्दर्शन
है।' आज का युग-विज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है, फलतः एसा सोचना और कहना, अपने श्राप में कोई बुरी बात भी नहीं है।
अच्छा तो आइए, जरा विज्ञान की पोथियो के भी कुछ पन्ने उलट लें। सुप्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक डॉ. गोरखनाथ का सौरपरिवार नामक भीमकाय ग्रन्थ लेखक के सामने है । पुस्तक का पाँचवाँ अध्याय खुला हुया है और उसमें सूर्य की दूरी के सम्बन्ध में जो ज्ञानवर्द्धक एवं साथ ही मनोरंजक वर्णन है, वह आपके सामने है, जरा धर्य के साथ पढने का कष्ट उठाएँ।
-"पता चला है कि सूर्य हमसे लगभग सवा नौ करोड़ मील की विकट दूरी पर है । सवा नौ करोड ! अंक गणित भी क्या ही विचित्र है कि इतनी बड़ी संख्या को पाठ ही अको में लिख डालता है और इस प्रकार हमारी कल्पना शक्ति को भ्रम में डाल देता है। [अंक गणित का इतना विकाश न होता तो ग्राप एक, दो, तीन, चार, यादि के रूप में गिनकर इस तथ्य को समझते । परन्तु विचार कीजिए कि सवा नौ करोड तक गिनने में आपका कितना समय लगता ?-लेखक ] यदि श्राप बहुत शीघ्र गिने तो शायद एक मिनट मे २०० तक गिन डाले, परन्तु इसी गति से लगातार, विना एक क्षण भोजन या सोने के लिये रुके हुए गिनते रहने पर भी आप को सवा नौ करोड तक गिनने में ११ महीना लग जायगा।"
[हाँ तो पाइए, जरा डाक्टर साहब की इधर-उधर की बातों में न जाकर सीधा सूर्य की दूरी का परिमाण मालूम करें-लेखक ] "यदि हम रेलगाडी से सूर्य तक जाना चाहें और यह गाडी बिना रुके हुए अरावर डाकगाडी की तरह ६० मील प्रति घन्टे के हिसाब से चलती जाय तो हम वहाँ तक पहुँचने में १७५ वर्ष से कम नहीं लगेगा । १३ पाई प्रति मील के हिसाब से तीसरे दरजे के याने जाने का खर्च सत्र सात लाख रुपया हो जायगा |..."यावाज हवा में प्रति सेविण्ड १, १०० फुट चलती है। यदि यह शुन्य में भी उसी गति से चलती तो