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आवश्यक दिग्दर्शनधर्म जीवन की साधना करते हुए अपने आपसे पूछो कि कही ' तुमने ऐसा काम तो नही किया है, जो घृणा का हो, द्वेष का हो, अथवा शत्रुता की भावना को बढ़ाने वाला हो। इन प्रश्नों का सन्तोषजनक उत्तर मिले तो समझना चाहिये कि प्रार्थना का, धर्माचरण का श्राप पर कोई असर जरूर हो रहा है, अथवा हुआ है।
-सन्त तुडको जी
मन का सभी मैल धुल जाने पर ईश्वर का दर्शन होता है। मन मानो मिट्टी से लिपटी हुई एक लोहे की सुई है, ईश्वर है चुम्बक । मिट्टी के रहते चुम्बक के साथ संयोग नहीं होता। रोते रोते (शुद्ध हृदय से पश्चात्ताप करते ) सुई की मिट्टी धुल जाती है। सुई की मिट्टी यानी काम, क्रोध, लोभ, पाप बुद्धि, विषयबुद्धि आदि । मिट्टी के धुल जाने पर सुई को चुम्बक खींच लेगा, अर्थात् ईश्वर दर्शन होगा।
घर में यदि दीपक न जले तो वह दारिद्रय का चिह्न है। हृदय में शान का दीपक जलाना चाहिए । हृदय मे ज्ञान का दीपक जलाकर उसको देखो।
-~-श्रीरामकृष्ण परमहंस मेरी सनझ में, हम लोगो को ऐसा होना चाहिए कि यदि सब कोई वैसे हो तो यह पृथ्वी स्वर्ग बन जाय ।
--ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जिनका हृदय शुद्ध है वे धन्य हैं, क्योंकि उन्हें परमात्मा की प्राप्ति अवश्य ही होगी। अतएव यदि तुम शुद्ध नहीं हो तो फिर चाहे दुनिया का सारा विज्ञान तुम्हें अवगत हो, परन्तु फिर भी उसका कुछ उपयोग न होगा!
- अगर शुद्ध हृदय और बुद्धि में झगड़ा पड़े तो तुम अपने शुद्ध