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________________ चन्दन आवश्यक - इसी लिए द्रव्य वन्दन का जैन धर्म में निषेध किया गया है। पवित्र भावना के द्वारा उपयोग पूर्वक किया गया भाव वन्दन ही तीसरे आवश्यक का प्राण है। प्राचार्य मलयगिरि आवश्यक वृत्ति मे द्रव्य और भाव-वन्दन की व्याख्या करते हुए कहते हैं-'द्रव्यतरे मिथ्यादृष्टेरनुपयुक्त सम्यग दृष्टेच, भावतः सम्यग दृष्टरुपयुक्तस्य ।' __ आचार्य जिनदास गणी ने आवश्यक चूर्णि में द्रव्य वन्दन और भाव वन्दन पर दो कथानक दिए हैं। एक कथानक भगवान् अरिष्ट नेमि का समय है। भगवान नेमि के दर्शनों के लिए वासुदेव कृष्ण. और उनके मित्र वीरककौलिक पहुँचे। श्री कृष्ण ने भगवान् नेमि और अन्य साधुत्रों को बडे ही पवित्र श्रद्धा एवं उच्च भावों से वन्दन किया। वीरककौलिक भी श्रीकृष्ण की देखा देखी उन्हें प्रसन्न करने के लिए पीछे-पीछे वन्दन करता रहा । चन्दन फल के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् नेमि ने कहा कि 'कृष्ण ! तुमने भाव वन्दन किया है, अतः तुमने क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त किया है और तीर्थकरगोत्र की शुभ प्रकृति का बन्ध । इतना ही नहीं, तुमने सातवी, छठी, पाँचवीं और चौथी नरक का बन्धन भी तोड दिया है। परन्तु वीरक ने देखा देखी भावना शून्य वन्दन किया है, अतः उसका वन्दम द्रव्यवन्दन होने से निष्फल है । उसका उद्देश्य तुम्हें प्रसन्न करना है, और कुछ नहीं।' दूसरा कथानक भी इसी युग का है । श्री कृष्णचन्द्र के पुत्रो में से शाम्ब और पालक नामक दो पुत्र वन्दना के इतिहास मे सुविश्रुत है। शाम्ब बडा ही धर्म श्रद्धालु एवं उदार प्रकृति का युवक था । परन्तु पालक बडा ही लोभी एवं अभव्य प्रकृति का स्वामी था। एक दिन प्रसगवश श्रीकृष्ण ने कहा कि 'जो कल प्रातः काल में सर्व प्रथम भगवान् नेमिनाथ जी के दर्शन करेगा, वह जो मॉगेगा, दूंगा ।' प्रातः काल होने पर शाम्ब ने जागते ही शय्या से नीचे उतर कर भगवान् को भाववन्दन कर लिया। परन्तु पालक राज्य लोभ की मूर्छा से घोड़े पर सवार होकर जहाँ भगवान् का समवसरण था वहाँ वन्दन करने के
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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