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चतुर्विशतिस्तव आवश्यक सामायिक आवश्यक को सावद्ययोग-विरति भी कहते है । अनुयोगद्वार सूत्र मे इस नाम का उल्लेख किया गया है। परन्तु प्रश्न है कि यह सावद्ययोग से निवृत्ति शीघ्रतया कैसे प्राप्त हो सकती है?
सावध योग से शीघ्रातिशीघ्र निवृत्त होने के लिए, समभाव पर पूर्ण प्रगति प्राप्त करने के लिए, साधक को किसी तदनुरूप ही महत्त्वशाली उच्च पालम्बन की आवश्यकता होती है। किसी वस्तु से निवृत्त होने के लिए उससे निवृत्त होने वालों को अपने समक्ष उपस्थित करने की एक मनोवैज्ञानिक अावश्यकता है। जब तक कोई महान् आदर्श साधक के सामने उपस्थित न हो तब तक उसका किसी वस्तु से निवृत्त होना कठिन है। ___हॉ तो, सावध योग से निवृत्त होने का उपदेश कौन देते हैं ? सावध योग की निवृत्ति किन के जीवन में पूर्णतया उतरी है ? समभाव रूप सामायिक के ससार मे कौन सब से बड़े प्रतिनिधि हैं ? अाध्यात्मिकसाधना-क्षेत्र पर नजर दौडाने के बाद उत्तर है कि 'तीर्थकर भगवान् , वीराग देव !
१ जिस साधना के द्वारा संसार सागर पार किया जाता है, वह तीर्थ है । 'संसार सागरं तरन्ति येन तत्तीर्थम् । -नन्दीसूत्र-वृत्ति ।
तीर्थ धर्म को कहते हैं, अतः जो धर्म का आदिकर्ता है, प्रवर्तक है, वह तीर्थकर है। 'तीर्थमेव धर्मः, तस्यादिकारस्तीर्थकराः ।।
आवश्यक-चूर्णि।
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