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________________ MARATue wrma Ran ॐ नमासिद श्रीसजनचित्तवल्लभ काव्य प्रारभ्यते (शार्दूल विक्रीड़ित छद) नत्वावीरजिनंजगत्त्रयगुरुम्मुक्ति श्रियोवल्लभम् पुष्पेपुक्षयनीतिवाण निवहसंसारदुःखापहं । वक्ष्येभव्य जनप्रबोधजननं ग्रंथसमासादहं ना म्नासज्जनचित्तवल्लभमिमं शृण्वंतु सन्तोजनाः ॥१॥ ॥ भाषाटीका ॥ में मल्लिपेन नाम आचार्य इस ग्रंथको कहूंगा। क्या करके वीरजिनेंद्र को नमस्कार करके । कैसे है। बीर जिनेंद्र उर्ध्वमध्य अधः तीनोलोकके स्वामी हैं। फिर कैसंह वीर जिनेंद्र मुक्ति स्त्री के पति हैं फिर कैसे हैं वीरजिनेंद्र कि कामदेव के शोषण १ तापन २ उ. च्चाटन ३ मोहन ४ वशीकरण ५ रूप पंचबाणों के छेदने को शीलरूप वाणके धारक हैं । फिर कसह ।
SR No.010712
Book TitleSajjan Chittavallabh Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherNathuram Munshi
Publication Year1899
Total Pages33
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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