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________________ -२० wwww श्रीसज्जनचित्तबल्लभ सटीक । || भाषांटीका || Intu ----- हे श्रात्मा बड़े शोक वा प्राश्चर्य का विषय है कि तेरी श्रायुष्यका आधा भाग तो निद्रावश सोते में जाता है और शेष आधा वाल तरुण वृद्ध अवस्थामें वृथा जाता है वालकपनमें तो खेल तमांशा अज्ञान वश प्रिय लगता है तरुण अवस्थामें नाना प्रकार दुर्विसन सेवन वा व्यापारिक चिंता कलह आदि में समय जाता है वृद्ध अवस्था पौरुष हीन और अनेक रोगों का घर है इससे विचारतोकर कियह श्रेष्ठ मनुष्य जन्म पाया तिसमें तने परमार्थ श्रात्महित क्या किया? इससे अब ऐसा निश्चय करके ज्ञानरूप खड़ से मोहरूप पासको काट जिससे मोक्षरूप स्त्री को पावे सो तिसको बश करनहारे श्रेष्ठ चारित्र को धारण कर यह चारित्र देवनर्क तिर्यच गतिमें नहीं धार सकता और इसके धारेबिना मोक्ष लक्ष्मीको नही पासकता ऐसा चित्त में सम्यक् श्रवाणकर ॥ १६ ॥ यत्काले लघुपात्रमण्डितकरोभ वापरेषां गृहे भिक्षार्थभ्रमसे तदाहि भवतोमानापमानेन किम् । भिक्षो 71
SR No.010712
Book TitleSajjan Chittavallabh Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherNathuram Munshi
Publication Year1899
Total Pages33
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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