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________________ memb e ren - - mmmwareneuroom - श्रीसज्जनचित्तवल्लभ सटीक। १६ ॥ भापाटीका ।। हे जीव तू जो सुख की चाहना करता है मो अपने मन में विचार तो सही कितने पूर्व जन्मम कुछ दान दिया था ? वा जप तप संयमरूप पुगय कर्म किया था? यदि नहीं कियातो इसलोक में मुख (जो दान पुण्य जप तपादिका फल है ) तुझको कम मिलेगा? जैसा पूर्व जन्म में किया है उसी के अनुसार तुझे इस जन्ममें प्राप्ति भवा है । संसार में यह बात तो प्रसिद्ध है कि संसार में किसान लोग कहीं बिना बोये भी धान्य काटते हैं जो बोने हैं सो ही काटतहा इस. लिये कीड़ों के खायेईख समान इस मनुष्य देह में तु रथा मोह मतकर भावार्थ इसे पाकर कुछ अान्महित करले यही मुगुरुकी परमोपकारी शिक्षा है ॥ १५ ॥ आयुष्यंतवनिद्रयामपरंचायुत्रि भेदादहो बालत्वेजरयाकियव्यस नतोयातीतिदेहिन्वृथा।निश्चिन्या मनिमोहपासमधुना संछियवोधा सिना मुक्तिश्रीवनितावशीकरण चारित्रमाराधय ॥१६॥ - AMA www animund mewomanawareneatmeomamr
SR No.010712
Book TitleSajjan Chittavallabh Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherNathuram Munshi
Publication Year1899
Total Pages33
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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