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14 त (त) 1 / 1 पिच्छये (गिच्छय) 7/1 ण (म ) = नही जुज्जदि - ( जुज्जदि) कर्म व 3 / 1 सक अनि सरीरगुणा [ ( सरीर )
- (गुरण) 1/2 ] हि (अ) = क्योकि होंति (हो) व 3 / 2 अक केवलिगो (वलि) 6 / 1 केवलिगुरणे [ ( केवलि) - ( गुण) 2 / 2 ] थुरादि (थुरण) व 3 / 1 सक जो (ज) 1 / 1 सवि सो (त) 1/1 सवि तच्च (क्रिविन ) = वास्तव मे केवल (क्वलि) 2 / 1
(प्र) = भो
15 यरम्मि ( यर) 71 / 1 वण्णिदे जह (श्र) = जैसे ग (प्र) = नही वि 6/1 वरणरणा (वण्णरण ) 1/2 कदा (कद ) भूकृ 1/2 श्रनि होदि (हो) व 3 / 1 ग्रक देहगुणे' [ (देह) - (गुण) 7 / 1] थुब्वते 2 (थुव्वते) वकृ कर्म 7/1 अनि केवलिगुरगा [ ( केवलि) - (गुण) 1/2 ] थूदा (थुद ) भूकृ 1 / 2 अनि होति (हो) व 3/2 क
(वणिद) भूकृ 7 / 1 अनि
रण्लो (राय)
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जो (ज) 1 / 1 सवि इदिये (इंदिय) 2 / 2 जिणित्ता ( जिरण) सकृ रणारण सहावाघिय [ (शारण) + (सहाव ) + (प्रधिय) ] [ ( गाण) - (सहाव ) - ( अघि ) 2 / 1 वि ] मुर्गादि (मुण) व 3 / 1 सक श्राद (द) 2 / 1 त (त) 2 / 1 सवि खलु ( अ ) = ही जिदिदिय [(जिद) + (इदिय)]] [[ ( जिद) भूकृ अनि - (इदिय) 1 / 1] वि] (त) 1/2 सवि भरणति ( भरण) व 3 / 2 सक जे (ज) 1 / 2 सवि रिच्छिदा ( रिणच्छिद) 1/2 वि साहू ( साहु) 1 / 2
1 जुज्नदि (कर्मवाच्य भनि ) का प्रयोग सप्तमी या पष्ठी के साथ 'उपयुक्त होना' अर्थ में होता है । आप्टे संस्कृत - हिन्दी कोप (युज्→कमं युज्यते) । जुञ्जदि' पाठ ठीक प्रतीत नहीं होता है । देखें समयसार
कुन्दकुन्द भारती के अन्तर्गत
( स प पन्नालाल साहित्याचार्य)
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एक क्रिया के बाद दूसरी क्रिया होने पर पहली क्रिया मे सप्तमी होती है । कर्मवाच्य में कर्म भोर कूदन्स में सप्तमी होगी ।
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समयसार