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155 ण दु होदि मों क्समग्गो लिंग जं देहरिणम्ममा अरिहा ।
लिगं मुइत्तु दसणणाणचरित्तारिण सेवंते ॥
156 ण वि एस मों खमग्गो पासंडिय गिहिमयाणि लिंगाणि ।
दसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गं जिणा विति ॥
157 तम्हा जहित्तु लिंगे सागारणगारियेहि वा गहिदे ।
दंसरणणाणचरिते अप्पाणं जुञ्ज मोक्खपहे ॥
158 मोक्खपहे अप्पारणं ठवेहि चेदयहि झाहि तं चेव ।
तत्येव विहर पिच्चं मा विहरसु अण्णदव्वेसु ॥
159 पासंडिय लिगेसु व गिहिलिगेसु व बहुप्पयारेसु ।
कुव्वति जे ममत्तं तेहि प रणादं समयसारं ॥
160 ववहारिओ पुरण पो दोणि विलिंगाणि भणदि मोक्खपहो।
रिणच्छयणमो दु णेच्छदि मोक्खपहे सवलिंगाणि ॥
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समयसार